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रयणसुंदर कहा
नवरायरिसीसमहीयसव्वसिद्धंतपत्तसंवेगो । कयतिव्वतवो संजायकेवलो सिवपयं पत्तो ॥ ६९९३ ॥ सिरिरयण सुंदरी वि हु राया तिव्वप्पयावजियसत्तू । सो रज्जं रंजियजणं परिपालइ रज्जमणवज्जं ॥ ६९९४ ॥ तो सेट्ठिधणद्धयरयणसुंदरो जह सुही वि पत्तदुहो । होउं पुणरवि सुहिओ जाओ तह होइ अन्नो वि ॥ ६९९५ ॥ तो पुव्वभवभवाणं कम्माणं परिणई धुवं सेट्ठि ! । पवियंभइ पाणीणं ता सुहकम्मज्जणे जयह ॥ ६९९६ ॥ तो भव्वजणो जाओ सव्वो वि कुकम्मकरणविरयमणो । जह जोग्गं अंगीकयधम्मो पत्तो सठाणेसु ॥ ६९९७ ॥ सिंगारमउडकुमरो वि नमिय गुरुणो गिहत्थजणजोग्गं । धम्मं सम्मत्तप्पमुहमुत्तमं गिन्हइ पहिट्ठो ॥। ६९९८ ।। वंदिय गुरुणो पभणइ पहु ! मह तुम्ह पसायओ जायं । सद्धम्ममहारयणं इहपरभवसुहयमियभणिओ ॥। ६९९९ ॥ नयरनिरिक्खणकज्जे जा चलिओ रईयरम्भसिंगारं । ता सुणइ नहे घणकणयकिंकिणीगणरणक्कारं ॥ ७००० || तं दछं निहियच्छी पेच्छइ मणिकिरणजालदुन्निरिक्खं । आगच्छंतं गयणे रविरहरयणं पिव विमाणं ॥ ७००१ ॥ तम्मज्झाओ रुंदवणमालिया वरवत्था अलंकरिओ । एगो खेयरतरुणो विणिग्गओ रूवरइरमणो ॥ ७००२ ॥ पत्तो कुमारपासे काउं पडिवत्तिमाह विणयपरो । कुमरारुहसु विमाणे गच्छामो जेण वेयड्ढे ॥ ७००३ || किं तत्थ कज्जमिय कुमरजंपिए भणइ खेयरो एवं । तुह उदयत्थं ति तओ कुमरो चडिओ विमाणम्मि ॥ ७००४ ॥ उवविट्ठो घणमणि - किरण - जालसंजणियसक्कचावचए । माणिक्कमत्तवारणयठाविए आसणे रुंदे ॥ ७००५ ॥
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