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सिरिअणंतजिणचरियं धम्मे धणवओ जं मए कओ अइबहू अजुत्तं तं । इय चिंतिऊण पच्छा पच्छायावो कओ एवं ॥ ६९८० ॥ हा हा पावेण मए सुट्ठाणे निजुंजियम्मि दव्वम्मि । अप्पहिए मोक्खफले विचिंतियं तं जमइपावं ॥ ६९८१ ॥ अहमेव पुन्नपत्तं जेण अच्चतदुत्थिएणावि । पत्ता असरिसरिद्धी समज्जिया तीए सिद्धी वि ॥ ६९८२ ॥ ता जं कुविकप्पवसेण किं पि समुवज्जियं मए पावं । मिच्छामिदुक्कडं मह मणवइकाएहिं से होउ ॥ ६९८३ ॥ इय पच्छायावेणं पुणरवि पुन्नाणुसंधणं विहियं । आलोईयं न जं तं गुरुणो तप्फलमिमं असुहं ॥ ६९८४ ॥ संजायं तुह तणयस्स सीहसंतासपमुहमइदुसहं । तप्पच्छायावेणं पुणरवि नियबलसिरी पत्ता ॥ ६९८५ ॥ सद्धम्माणुट्ठाणम्मि राइकइयाइभावपरियत्ती । थेवा वि रक्खियव्वा जं सा दारुणविवागफला ॥ ६९८६ ॥ एयं नरनाह ! तुह पयासियं पुत्तयस्स दुहसहणं । ईय जंपिऊण मोणे परिट्ठिओऽणंतनाणधरो ॥ ६९८७ ॥ तो केवलिपयसयदलमभिवंदिय नरवई कुमरकलिओ । सहिओ परिवारेण य निययप्पासायमणुपत्तो ॥ ६९८८ ॥ काऊण न्हाण-भोयणपमुहं करणिज्जमुत्तमे लग्गे ।। कुमरो अणिच्छमाणो वि राइणा ठाविओ रज्जे ॥ ६९८९ ॥ सकलत्तो वि हु कइवयरायाइजुओ समारुहियसिबियं । तित्थं पभावयतो रिद्धीए गओ गुरुसयासे ॥ ६९९० ॥ मुत्तुं सिबियं कय तिप्पयाहिणो पणमिउं गुरुं भणइ । पहु ! वियरह मह दिक्खं ति तयणु सो दिक्खिओ गुरुणो ॥ ६९९१ सिक्खाविय दुव्विहसिक्खस्स तस्स पाए नमित्तु नवनिवई । पणयगुरूपओ विरहुव्विग्गो पत्तो निए भवणे ॥ ६९९२ ॥
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