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- सिरिअणंतजिणचरियं ता एयं जिणमंदिरमवलोईयसुमरिया मए जाई ।। जह जिणधूवक्खेवो जाओ कल्लाणहेऊ मे || ८३२२ ॥ तं सोऊणं मंडलियमंतिणो बिंति जयइ जिणधम्मो । अप्पस्स वि जस्स कयस्स हुंति महईओ रिद्धीउ ॥ ८३२३ ॥ तयणु कुमरेण रिसहस्स सामिणो भत्तिपुलयकलिएण । पणमिय विहिओ अट्ठाहियामहो गरुयरिद्धीए ॥ ८३२४ ॥ ता चउरंगचमूयसंचाराउरियक्खमावीढो । अब्भंलिहधवलहरे संपत्तो नियपुरे कुमरो || ८३२५ ॥ उसियसियद्धयोहे निम्मियमंचाइमंचकयसोहे । पविसइ पुरम्मि कुमरो विलसिए सिंगारजियअमरो ॥ ८३२६ ॥ गंतुं सहाए पणओ पिउणो पयसयदलं तओ तेण । आलिंगिऊण कुसलप्पउत्तिमापुच्छिओ पुत्तो ॥ ८३२७ ॥ सो आह ताय ! मह तुह पसायसुहियस्स सव्वया कुसलं । इय जंपिय उवणीया पिओ पुरओ तेण सत्तुसिरी || ८३२८ ॥ पणओ सत्तुसुओ वि हु तस्स कओ राइणा वि सम्माणो । “पणयम्मि वच्छल च्चिय पहुणो सत्तुम्मि वि निए व्व ॥ ८३२९ ॥ पणयाए बहुयाए भवपुन्नवइ त्ति जंपियं रन्ना ।। “भणइ परे वि हियं चिय गुरुओ किं माणुसे न निए" ॥ ८३३० ॥ कइवयदिणावसाणे रज्जम्मि निवेसिओं सुओ रन्ना । “पुत्तं मुत्तुं नन्नस्स होइ सव्वस्स सामित्तं ॥ ८३३१ ॥ सुविहियसूरिसयासे गहिया दिक्खा निवेण रिद्धीए । "इहलोईयं जहा तह परभवकज्जं पि कुणइ गुरू" ॥ ८३३२ ॥ चरिय तवं उप्पाडिय केवलनाणं निवो सिवं पत्तो । "किमसज्झं वा दुक्करतवस्स भावेण विहियस्स” || ८३३३ ॥ नवनिवई वि नयपरो पयाओ पालइ अभिद्दवइ दुढे । वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे मन्नए मित्ते ॥ ८३३४ ॥
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