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________________ २३१ रणविक्कमकहा इय चिंता संतत्ताए तीए वरिसाण वीसई जाया । उवरोहविलासिएहिं नरिंदमवरिं जयंतीए ॥ २९४० ॥ समयंतरम्मि चिंतइ देसियविप्पाण देमि कणयमहं । एइ जह मह पई वि हु सपुत्तओ दव्वलोहेण ॥ २९४१ ॥ इय चिंतिऊण कणयं कयपडिवत्ती पयच्छइ दियाण । तो दूरदेसिया वि हु विप्पा चलिया तयं सोउं ॥ २९४२ ॥ एवंरूवपसिद्धिं, आयन्निय वेयसारविप्पो वि । संपत्तो पुत्तजुओ तम्मि पुरे तीए भवणम्मि ॥ २९४३ ॥ कारिय न्हाणो विरईयविलेवणो दिन्नभोयणो विप्पो । देवीए देइ आसिं सपुत्तओ मंतमुच्चरिओ ॥ २९४४ ॥ उवविट्ठो परियाणिय पुट्ठो देवीए विप्प ! कत्तो तं । कत्थ पिया तुह किं होइ एस बालो ? त्ति सो आह ॥ २९४५ ॥ मह वुत्तंतं निसुणसु देवि ! दिउ अस्थि लच्छितिलयपुरे । नामेण वेयसारो त्ति कामलच्छी पिया तस्स ॥ २९४६ ॥ वेयवियक्खणनामे जाए पुत्तम्मि वरिसदेसीए ।। मयरद्धएण रन्ना आगंतुं वेढिउं नयरं ॥ २९४७ ॥ सलिलाणयणाय गया न कामलच्छी गिहं पुणो पत्ता ।। समरंगणे वि णट्ठा नट्ठा वा नज्जए नेयं ॥ २९४८ ॥ पाणप्पियं पियं तं अनियंतो सो अईव उव्विग्गो । किं कायव्वविमूढो, हियसव्वस्सो व्व संजाओ ॥ २९४९ ॥ जणणीविओयरोयंतबालपालणदुहत्तमणवित्ती । उप्पाइय जणकरुणं रोयइ हाहारवरउदं ॥ २९५० ॥ हा हा कंते कंते ! ह हा पसंते ! ह हा विमलदंते ! । हा जणियपरमविणए दइए ! तं कत्थ पेच्छिस्सं ? ॥ २९५१ ॥ हा विलसिरवयणस्सिरी हहा वामोयरि ! हहा अरुणअहरि ! । सव्वंगसुंदरि ! तुमं, पालसु नियपुत्तमागंतुं ॥ २९५२ ॥ उव्वेयणिज्जा सेज्जा, मह जाया अज्ज वज्जियस्स तए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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