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सिरिअणंतजिणचरियं
नाऊण निवनिबंध, अप्पं मोयाविउं अपारंती ।। उवरोहेण वि जाया निवआणा पालिया बाला ॥ २९२७ ॥ अच्चासत्तो राया जाओ न तरइ खणं पि तं मोत्तुं । अहवा सुरूवरमणीए को न मोहिज्जए कामी ॥ २९२८ ॥ रयणाभरणविलेवणमणहरवत्थाई देइ राया से ।। दिज्जंति जाणपाणा वि ताण दइयाण किमदेयं ॥ २९२९ ॥
आलवणं पि न रन्नो अवरपियाणं कुओ परीभोगो ? । भाणइ नडे विमुंचइ जमणिठं भुज्जएऽभिमयं ॥ २९३० ॥ लच्छीविलासरन्ना समरासत्तेण रिउनरिंदस्स । विहिया आणा अहवा समयन्नुत्तं सिरीमूलं ॥ २९३१ ॥ चलियमयरद्धयनिवो गओ सदेससपुरे महासाले । कयकिच्चो नत्तो वि हु वसइ विएसम्मि किमु राया ? ॥ २९३२ ॥ नवदईयाए पयच्छइ मणिभवणप्पमुहलच्छिविच्छडं । किरियादारेणं चियं नेहो नज्जइ न वयणेहिं ॥ २९३३ ॥ हियएण नियपइं सा देहेण पुणो नरिंदमणुसरह । पाएणप्पमयाओ न हुंति एगप्पसत्ताओ ॥ २९३४ ॥ चिंतइ सा काराओ व छुट्टिस्समहं कया निवनिरोहा । कइया नयणाणंदं दइयं चंदं व दच्छीहं ॥ २९३५ ॥ सव्वुत्तमनिवभोगो, रोगो व्व जणेइ गुरुमणुव्वेयं । जस्सप्पभावओ मे, निवारियं बहिपरिब्भमणं ॥ २९३६ ॥ मज्झ सरीरं दूरं अंगारभरो व्व दहइ सिंगारो । इट्ठजणनयणतोसो जं दटुं जायए नेय ॥ २९३७ ॥ रोरत्तं च पहुत्तं मज्झमणि सा समाहिं संजणणं । जाइ न जं उवओगं पुत्त-पइप्पमुहसयणाण ॥ २९३८ ।। जइ तइया रणभडमुक्कबाणजज्जरतणू विवज्जंती । पियपुत्तविरहदुक्खं ता नूणं नेव पावंती ॥ २९३९ ॥
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