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सिरिअणंतजिणचरियं उम्मत्तजोव्वणुद्दामकामकमणीयकायकंतीओ । नहयरनियंबिणीओ पुत्तो परिणाविओ पिउणा ॥ ८१४० ॥ तं अहिसिंचिय रज्जे पव्वज्जं गिण्हए खयरराया । इहलोइयपरलोइयसुहकज्जे उज्जया गरुया ॥ ८१४१ ॥ जलसारखयरचक्कीपरचक्कक्कमणकयमणुक्करिसो । पासइ पसरंतपहो नियरज्जसिरिं सुरिंदो व्व ॥ ८१४२ ॥ लीलाए वि परिचलिरम्मि जम्मि माणिक्कमयविमाणेहिं । गयणयलमलंकिज्जइ सया वि किंकिणिकलरवेहिं ॥ ८१४३ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरे कुणइ संघबहुमाणं । जिणजत्ताओ पवत्तइ मंदरनंदीसराईसु ॥ ८१४४ ॥ इय सद्धम्मं रज्जस्सिरिं च परिपालिऊण बहुकालं । नामेण रयणसारं कुमरं रज्जे ठवेऊण ॥ ८१४५ ॥ नियजणयचरणमूले दिक्खं गहिऊण कयतवच्चरणो । पावियकेवलनाणो पिउणा सह सिद्धिमणुपत्तो ॥ ८१४६ ॥ विहिया जह जलपूया सिवसुहहेऊ इमस्स संजाया । तह जायइ अन्नस्स वि भत्तीए तीए ता जयह ॥ ८१४७ ॥ भणिओ जलपूयाए जलसारो संपयं पयंपेमि ।। निवधूवसुंदरकहं आयन्नह धूवपूयाए || ८१४८ ॥ (धूवपूयाए धूवसुंदरनिवकहा) अत्थि प्फुरियमहानीलमणिसिलासालफलिहकविसीसं । सिरकुसुमियवणपरिवेढियं व नयरं महासालं ॥ ८१४९ ॥ पडिमंदिरमणिभित्तिप्पडिबिंबियतरणिभासुरत्तेण ।। जं पेच्छिउं पि तीरइ न तस्स कत्तोरिपरिभूई ॥ ८१५० ॥ थिरमइपयावजियगुरुअहिमयरो जलनिहि व्व गंभीरो । चंदो व्व पवित्तकरो राया नयसुंदरोत्थि तहिं ॥ ८१५१ ॥ बहुसंखमंडलयग्गप्पहारपरजयपवित्तया कलिओ । जो एक्कमंडलयप्पहारपरजयपवित्तो वि ॥ ८१५२ ॥
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