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धूवसुंदरनिवकहा तस्संतेउरतरुणीपहुत्तपयमस्सिया पिया अस्थि ।। नामेण कम्मणा वि हु विजयवई सीलकुलभवणं ॥ ८१५३ ॥ डझंतागरुनवधूवसुंदरो धूवसुंदरो नाम । तीए स्थि हत्थिमंथरगई रईसोवमसरीरो ॥ ८१५४ ॥ समराईओ सुसाहु व्व समणधम्मो व्व जो सुहयमित्ती । सक्कसमलच्छिविलासो गयकरबाहो महुमहो व्व ॥ ८१५५ ॥ कुमरो कयाइ आरुहिय खंधरं गुरुकरेणुरायस्स ।। छत्ततिरोहियतरणीतरुणीकरचलिरसियचमरो ॥ ८१५६ ॥ पुरओ पयट्टहयघट्टचडियनियमित्तपत्तिसंजुत्तो । पविसिय सहाए पणमिय पिउणो पुरओ समुवविट्ठो ॥ ८१५७ ॥ , एत्थंतरम्मि रणवीरराइणो दारवालविन्नत्तं । दूओ दुयं नरिंदं नमिउं विन्नविउमारद्धो ॥ ८१५८ ॥ पहु ! पिहुपयावपावयपुलुट्ठपरिपंथिरसत्थसलहेण । गयउरपहुरणवीरेण पेसिओ तुह सयासे हं ॥ ८१५९ ॥ मह पहुणा तुह आणा पट्ठविया जह पयच्छ पइवरिसं । मह कर मह न पयच्छसि धरियधणू होसु ता समुहो ॥ ८१६० ॥ असरिससामत्थेण वि तेण तुमं नीइपुव्वयं भणिओ । को मुहुरोसहसज्झे रोए कडुओसहं देइ ? || ८१६१ ॥ ता हरिही रज्जं पि हु जइ न धरसि तस्स सासणं सीसे । हरिणाहिवम्मि हरिणावमाणणा नणु अणत्था य ॥ ८१६२ ॥ कहियं हियं तुह मए तं कुणसु नरिंद ! जं मणोभिमयं । सप्पुरिसपयडियं पि हु गिन्हति हियं न देव्वया ॥ ८१६३ ॥ छन्नो वि रायरोसो दूऊत्तस्सवणओ ठिओ पयडो । किं उद्धहिओ अग्गी जालिज्जंतो न पज्जलइ ? |॥ ८१६४ ॥ भिउडिघडणा निवइणो समं पि विसमत्तमुवगयं भालं । विजयद्धयस्स वत्थं व मंदपवमाणतरलणउ ।। ८१६५ ॥
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