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सिरिअणंतजिणचरियं
भणियं निवेण रे दूय ! तुह पहू मह करं गहिउकामो । अहयं तु नियकरेणं रणे गहिस्सं सिरं तस्स ॥ ८१६६ ॥ तं पेसिय तुह पहुणा वि रोहिओ हं धुवं सनासाय । निद्दायत्तमइंदप्पडिबोहो किं सुहं देइ ? ॥ ८१६७ ॥ आणसु तं नियनाहं नाहं जं से सहिस्समवराहं । साहूणं सिंगारो अविणयसहणे न निवईणं ॥ ८१६८ ॥ दूएणुत्तं निव ! नियघरट्ठिओ जह वहसि भडवायं । तह जइ समरुच्छंगे वि ता तुमं चेव वीरवई ॥ ८१६९ ॥ रायाह जाहि आणेहि नियनिवं दूयदेससीमाए । जह रणनिहसो दंसइ पोरुसकणयुब्भवं वनं ॥ ८१७० ॥ इय जंपिय सम्माणिय विसज्जिओ राइणा गओ दूओ । अच्चंतं कुविया वि हु उज्झंति नरेसरा न नयं ॥ ८१७१ ॥ ताडाविया निवइणा रणभेरी भीरुभूरिभयजणणी । तो नयनिवेण कुमरेण पत्थिया समरगमणाणा ॥ ८१७२ ॥ नाऊण निबंधममच्चमंडली जंपिएण दिन्ना से । रणगमणाणा तो सो चलिओ चउरंगबलकलिओ ॥ ८१७३ ॥ गुरुगयघडासु तुरयावलीसु रणझणिरकिंकिणिरहेसु ।। रायाणो सामंता मंडलिया चडिय संचलिया ॥ ८१७४ ॥ परिकलयंता बहुआउहाई आउहणा य जोहोहा । कुमरं परिचारंता जंति पहे समरनिव्वहिया ॥ ८१७५ ॥ विरईय बहुप्पयाणयसयलंघियनिययदेससीमाए । पत्तो कुमरो रिउनरवई वि सबलो सदेसंतो ॥ ८१७६ ॥ उवभुत्तसपहुगरुयप्पसायनिक्कयुकयुज्जमा सुहडा । अन्भिडिया असमुच्छलियमच्छरुच्छाहसंजुत्ता ॥ ८१७७ ॥ हरिकरिरहचडिएहिं हयगयसंदणठिया पडिक्खलिया । पयचारिणो वि रुद्धा समच्छरं पायचारीहिं ॥ ८१७८ ॥
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