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________________ सिरिअणंतजिणचरियं भमराण पाणगोट्ठी संकेओ सव्वकुसुमजाईणं । कलकंठीण कुलभरं जं रंगो मोरनट्टाणं ॥ ७२६५ ॥ तम्मि पविसंतो नियइ नरवई साहुमंडलीकलियं । नामेण मयणदमणं सूरिं दूरी कयमयारिं ॥ ७२६६ ॥ सामासन्नं पि सया आजम्मं बंभचेरधरणपरं । निच्चं पि अमयवयणं अंगीकय समयवयणं पि ॥ ७२६७ ॥ जलभरिय जलहरसंवलिगज्जियउद्दामदेसणासरेण । . धम्मं वागरमाणं सनरामरखयरपरिसाए ॥ ७२६८ ॥ तो भत्तिब्भरभिज्झंतविहुरनहरंतरालरोमंचो । परिहरियकरिखंधो राया पत्तो पुहुपयंतं ॥ ७२६९ ॥ नमइ प्पयाहिणाओ दाऊण मुणिंदपायसयवत्तं । गुरुपत्तधम्मलाहो समुचियठाणे समुवविट्ठो ॥ ७२७० ॥ मुहुरस्सरेण गुरुणा वि साहियं तस्स भवभवं असुहं । जह पावभरक्कंता सत्ता नरए सहति दुहं ॥ .७२७१ ॥ पावंति य तिरियत्ते कयत्थणाओ बहुप्पयाराओ । विसहति य मणुयत्ते पराभवे ईसराइकए ॥ ७२७२ ॥ किब्बिसियाइसुरेसु वि लहंति पेसत्तणाई दुक्खोहे । तो नत्थि चउविहम्मि वि न वे सुहं धम्मरहियाण ॥ ७२७३ ॥ धम्मो वि देव-गुरु-तत्त-सुद्धसम्मत्तभावओ होइ । तम्मि अरागद्दोसो देवो सुगुरू वि निग्गंथो ॥ ७२७४ ॥ तत्ताई वि जीवाईणि विमलनाणिप्पयासियाइं नवं । देव-गुरु-तत्ताणं सद्दहणे होइ सम्मत्तं ॥ ७२७५ ॥ तेण सुदेवत्तसुमणे सत्तस्सेक्खाई जुंजिउं भव्वा । सव्वा बाहविउत्तं परमाणंदं सिवमुर्विति ॥ ७२७६ ॥ तं सोउं चित्तब्भवंतभूरिसंवेगरंगिओ राया । जंपइ तुह पयपासे पव्वयं पहु ! गहिस्समहं ॥ ७२७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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