SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८७ रणविक्कमकहा तो तंमि जामइल्ले जाए सुत्तं तिगं पि निच्चितं । विगया वक्खाणऽहवा सुहनिदाए किमच्छरियं ॥ २३७० ॥ विहियवरवीरवेसो, निविडनिबद्धनिद्धनियकेसो । कोसायड्ढियखग्गो, चिट्ठइ जा मडयगयदिट्ठी ॥ २३७१ ॥ ता सहसा परिमुक्कट्टहास-भेसियमसाणसत्तोहं । मडयं समुट्ठियं, उद्धनियसरीरद्धमुक्कधरं ॥ २३७२ ॥ दठूण उठ्ठियं तं, घेत्तुं केसेसु मुक्कहुंकारो । पहणइ कवोलफलए, निद्दयदढकरचवेडाहिं ॥ २३७३ ॥ मडएणुत्तं किं तुह मए कयं जमभिहणसि निक्कमणं । सो आह उट्ठीया किं न सरूवत्थं चलइ मडयं ॥ २३७४ ॥ तीउत्तं अम्हाणं कीलाठाणं इमं ति कीलेमो । सो जंपइ न पयच्छामि कीलिउं कीलियानिट्ठा ॥ २३७५ ॥ सा आह अहो मा एवमेव वारेसु किं तु जुत्तीए । तेणुत्तं का जुत्ती ? सा जंपइ सुणसु साहेमि ॥ २३७६ ॥ खेल्लसु सारीहिं मए समं तुमं जइ जिणेसि ता तुज्झ । कणयमयफलयपासयवज्जावलिकलियसारीओ ॥ २३७७ ॥ अह कह वि जिणामि तुमं ता मह पिउकंचणं न चित्तव्वं । अम्हाणं तुम्हाण य पमाणो एस च्चिय पइण्णा ॥ २३७८ ॥ सुरविक्कमेण भणियं आणसु फलयाइयं तओ झत्ति । गयणंगणाओ पडियं तं मणिगणकिरणकब्बुरियं ॥ २३७९ ॥ तं दटुं विम्हईओ, कीलइ सुरविक्कमो समं तीए । पासयपाडणसारी-संचारणरणज्झणिरफलयं ॥ २३८० ॥ वह-बंध-मरणभावं पत्ताओ तीए सयलसारीओ । तो सा विजिया पहरो वि वज्जिओ घडियगेहम्मि ॥ २३८१ ॥ एत्थंतरम्मि सहसा, मडयं पडियं दड त्ति भूमीए । हारीए जायाए किं को वि हु अभिमुहो होइ ? || २३८२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy