SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ सिरिअणंतजिणचरियं एवं देवनिकाए, सव्वम्मि वि आउले भवंतम्मि ।। विरओ समग्गकप्पे, विमाणघंटारणक्कारो || १४३६ ॥ तयणु हरिणेगमेसी, साहइ अवहियमणाण देवाण । हे अमरा ! सक्को , आणवेइ, तुब्भे लहुं एह ॥ १४३७ ॥ जेण जिण-जम्म-मज्जण-महकरणकए अहं चलिस्सामि । इय सोउं पहुआणं, पमुईय-हियया सुरा जाया ॥ १४३८ ॥ . दूरुज्झियविसयरसा, पमुक्कपेच्छणा य पेच्छणारंभा । पउणा हवंति अमरा, जिणजम्मऽच्चणगमणकज्जे ॥ १४३९ ॥ कयमज्जणपुक्खरिणीण्हाणा गोसीसचंदणविलित्ता । नियसियदेवदुकूला, कंठट्ठावियकुसुममाला ॥ १४४० ॥ केयूरकडयकुंडलकिरीडकंची-कलावकयसोहा । इय रइयचंगसिंगारसुंदरा हरिसहयहियया ॥ १४४१ ॥ तो सुरचित्तनिहियजिणमज्जण अच्छरउच्छाहहिं मणरंजण । चल्लिर चलकुवलयदलनयणिय चंदलेहचंदोवमवयणिय ॥ १४४२ ॥ कुवलयमालि झडत्ति, पहुच्चइ मणवंछियजनअप्पडं मोच्चइ । हे सिंगारदेवि ! घोरच्छणि मोणु म करि मंदर-पहपत्थणि ॥ १४४३ ॥ ( तुह लीलावइ ! मअसणवल्लहि, आलसु मेल्लि हेल्लि किं न चल्लहि हलि वलि चंपयमालि मणोहरि, कुंभिकुंभजुयपीणपउहरि || १४४४ ॥ चंदप्पहि चंदस्सिरि, चंदणि लच्छि महच्छि वरच्छि सुनंदणि । लग्गहु मग्गि सिग्घु ईय जंपिर, पत्त अमर हरि पासि अकंपिर ॥ १४४५ ॥ अह झत्ति सुरेसरु, नवजलहरसरु, पालय अमरु समाइसइ । वेउव्वियसत्तिएवर विच्छित्तिए, करि विमाणु जं जगि लसइ ॥ १४४६ तयणु निप्फाइयं तेण सुविमाणयं, जंबुदीवप्पमाणं रमाठाणयं । पंचजोयणसहस्साई उव्विद्धयं, वज्जमयवेईया वलयपरिणद्धयं ॥ १४४७ ॥ नीलमणिकिरणभरइयघणडंबरं, पउमरायप्पहापिंजरियअंबरं । अनिलरिखोलणारणियकिंकिणिधयं मोत्तिउकुलविच्छित्तिआविद्धयं ॥ १४४८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy