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प्रतिपरिचय
अनन्तनाथ जिन चरित की केवल एक ही हस्तलिखित कागज की प्रति मिलती । यह प्रति संवेगी उपाश्रयज्ञानभण्डार अहमदाबाद में है । इसका क्रमांक १८० । इस प्रति में कुलपत्र २०६ हैं । इसकी लम्बाई ३३ सें. मी. एवं चौड़ाई १२ .मी. है । प्रत्येक पत्र में १५ लाईने हैं । ग्रंथ प्रमाण १२००० श्लोक है । प्रति के अन्त में ग्रन्थकार की एवं ग्रन्थ लिखाने वाले की प्रशस्ति है । ग्रन्थ लिखानेवाले महानुभाव की प्रशस्ति इस प्रकार है
“श्री अनन्तजिनचरितं समाप्तमिति ॥ छ ॥ संवत १४९७ वर्षे कार्तिक सुद रवौ मंत्रि कूपा लेखि ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्री ॥ कर्णावती पुरवरपुरी वासी दारिद्यदूरवित्रासी । श्रीमालिज्ञातिमणिर्बभूवनाथाभिधः साधुः ॥ १ ॥ ज्यायो गोधावर्द्धनबांधवसहितस्य धर्मनिरतस्य । तस्य जयंति विनीता नामकदेवी भवाः पुत्राः || २ || केशव - लाइय-मूंमण नामानः पुण्यपुण्यधामानः । तेषु च केशवनामं जिह्मब्रह्मादिगुणगरिमा ॥ ३ ॥ श्री बालादिपुण्यकरनिजकुटुम्बसहितो हितोपदेशगिरः ।
आकर्ण्य तपागच्छेशानां श्रीसोमसुन्दरगुरुणाम् ॥ ४ ॥ आराधयितुं ज्ञानं लक्षग्रन्थं च लक्षपुण्ययशाः । न्याय्येन लेखयन् निजधनेन चित्तकोशयोग्यं सः ॥ ५ ॥
साल्हादमली लिखदमलीमसमुच्चैरनंतजिनचरितं । शशिवेदनिधि हयाब्दे १४९७ सुचिरमिदं वाचयंतु बुधाः || प्रशस्तिरियं ॥ कल्याणमभितो भूयात् श्री श्रमण संघस्य ॥ श्री ॥
यह प्रति अति जीर्ण है । बीच बीच में अक्षर टूटे हुए हैं । पन्ने इतने घीसे हुए हैं कि उन्हें पढ़ना भी मुष्किल है ।
इस प्रति में जहाँ जहाँ शब्द या अक्षर खण्डित हैं या लिपिकार की गलती से शब्द के बीच के अक्षर छूट गये हैं उनकी पूर्ति योग्य कल्पना करके ऐसे कोष्ठक में कर दी गई है । लुप्त पाठ के स्थान पर (....) इस प्रकार का रिक्त स्थान रखा गया है । रिक्त स्थानों के पाठ के लिए जहाँ अनुमान हो सकता है वहाँ कोष्टक में संभावित पाठ का निर्देश किया है। जो पाठ लिपिकार के दोष से अशुद्ध ही प्रतीत होते हैं उन अशुद्ध पाठ के स्थान पर शुद्ध पाठ
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