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________________ ३४८ सिरिअणंतजिणचरियं तो सव्वाण वि देवो वत्थाहरणाई देइ दिव्वाइं । मणवंछियसिद्धिपरा, जन्न पयच्छंति तं चित्तं ॥ ४४५० ॥ ते मोयाविय अमरो, तप्पणओ मणिविमाणमारुहिउं । चलिओ चिट्ठइ को वा खणं पि किं कज्जपरिहीणो ? ॥ ४४५१ ॥ अवरम्मि गए खयरेसरेहिं भणियं नरिंद ! गच्छामो । तुह नयरे तं मुत्तुं जामो वयमवि नियपुरेसु ॥ ४४५२ ॥ तं सोउमाह राया जिणस्स अट्ठाहियाओ ता कुणह । तो ते बहुमाणेणं ताओ काऊण संचलिया ॥ ४४५३ ॥ गयणं आऊरंता विमाण-करि-तुरय-रह-भड-बलेहिं । इह पत्ता मंति इमं पहु हरणाई तुहक्खायं ॥ ४४५४ ॥ इयरवि सेहरनहयरमुहनिसुए सामिहरणवुत्तंते । मंतिप्पमुहा सव्वे वि, सेवया जंपिउं लग्गा ॥ ४४५५ ॥ पेच्छह पहुणा बहुणा, कट्टेण विलंघिउं नईनाहो । सिद्धेण व तिव्वेणं तवेण किच्छेण संसारो ॥ ४४५६ ॥ सामी गओ विमाणे जलकरिणा पेरिओ समुद्दाओ । अपुणब्भवं भवाओ, केवलनाणेण जीवो व्व ॥ ४४५७ ॥ तुरई जाया जं माणुसी वि देवी इमं तु अच्छरियं । “अहवा जीवस्स न का विडंबणा भवइ भववासे ?” || ४४५८ ॥ अक्खयसरीरसीला, पत्ता दईयारिउविनिज्जिणिओ । अमरो मित्तो जाओ, पुन्नप्फुरियं अहह पहुणो ॥ ४४५९ ॥ पणओ देवो गुरुणोभिवंदिया पावियं च संमत्तं । अवहरियस्स वि जाया कल्लाणपरंपरा पहुणो ॥ ४४६० ॥ एवं पसंसमाणेसु, मंतिपमुहेसु सयललोएसु । सम्माणिया नहयरा घणरयणाभरणवत्थेहिं ॥ ४४६१ ॥ मोयाविय नरनाहं, गएसु वेयड्ढगुरुगिरितेसु । विज्जुप्पहराया वि हु, विसज्जिओ विहियसम्माणो || ४४६२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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