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सीलोवरिरयणावलीकहा ता तं दुज्जणपयई, पच्छन्नवयारकारयं पावं । निग्गहसु न जसुवेहा कीरइ रोयम्मि व रिउम्मि ॥ ४४३७ ॥ राया जंपइ पयडो, जइ दीसइ सो हणेमि ता तमहं । तम्मिं करेमि किं जो, जमो व्व पच्छन्नमवयरइ ॥ ४४३८ ॥ देवेणुतं सत्तुं निग्गहिय, अहं इहं समणुपत्तो । तुह सारा करणत्थं ता जं किच्चं कहसु तं मे ॥ ४४३९ ॥ आह निवोहं पहु ! भूमिगोयरो निग्गहेमि कहमहियं । सो गयणगई ता तस्स निग्गहं भव पसायपरो || ४४४० ॥ ईय जंपियावसाणे दड त्ति देवाणुभावओ वेरी । माऊरबंधनद्धो नहाओ पडिओ नरिंदपुरे ॥ ४४४१ ॥ कीलाकंदुगो विव उच्छलिय नहे पुणो पुणो पडइ । अणुकलमवि पयडते व्व चडणपडणाइं पाणीए ॥ ४४४२ ॥ गंतुं गयाण वेगेण भमइ सो कुंभयारचक्कं व ।। मुंचइ य रुहिरवरिसं, मुहेण असिवुब्भवघणो व्व ॥ ४४४३ ॥ दळूण तमच्छरियं, सव्वो वि हु विम्हिओ खयरलोगो । उत्ताणियच्छिवत्तो, भमिपरिभमिरंतमिक्खेइ ॥ ४४४४ ॥ तो रयणसेहरेणं निवेणं कारुन्नपुन्नहियएण । मोयाविओ जिणाणा निरयणे न होइ निग्घिणया ॥ ४४४५ ॥ मुक्को सुरेण पीडं, अवहरिओ सो कओ सहावत्थो । सावाणुग्गहदाणक्खमो किमन्नो विणा अमरं ॥ ४४४६ ॥ भणइ सुरो जइ खंडसि रायाणं मरसि फुडियसीमंतो । सव्वं पि तब्भया तेण मन्नियं मह इमो करणं ॥ ४४४७ ॥ पयलग्गो सो निवरयणसेहरं खामए सदुच्चरियं ।। खमइ य सो पणयाणं, वेरीण वि वच्छला सच्छा ॥ ४४४८ ॥ आह-सुरो पुणरवि तं पत्थसु जह देमि भणइ तो राया । वियरसु कामियरूवं, भणइ सुरो होहिही तं पि ॥ ४४४९ ॥
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