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________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा नवरं वानरिजीवो मह मित्तसुरो कहिं पि उप्पन्नो । न मुणेमि जं तमिहि असुहं मं दूमए दूरं ॥ ६७३ तो भो अमरा ! तुझे निम्मलअवहिवियाणियजयत्था । तं जाणिऊण साहह सुब्भमुही जत्थ उप्पन्नो ॥ ६७४ || तो इक्केण सुरेणं भणियं दट्ठूण नाणनयणेण । वेयड्ढम्म गिरिंदै रहनेउरचक्कवालपुरे ॥ ६७५ ॥ मणिमउरखयरवई समत्थि से रयणमंजरी भज्जा । नामेण चंदमाला तुह मित्तो तस्सुया जाया ।। ६७६ || स च्चिय जीए कज्जे वरिडं तं खेयरेहिं आगंतुं । संभविही तुह भज्जा एत्थत्थे नत्थि संदहो । ६७७ ॥ नवरं उत्तरसेणीवइणा सह तुह भविस्सए कलहो । साहम्मिओ तमम्हं कारावियं जिणहरं जेण ॥ ६७८ ॥ ता गिण्हसु विज्जाओ अम्ह पभावेण पढियसिद्धाओ । जह न कइया वि जायइ पराभवो तुज्झ कत्तो वि ॥ ६७९ ॥ इय भणिय गयणगमणपमुहाओ तस्स तेण विज्जाओ । दिन्नाओ तहा सो दुज्जओ कओ सत्तुवग्गस्स ॥ ६८० ॥ इय कुमरं सम्माणिय अमरो पत्तो सपरियणो सग्गे । पुव्वप्पियाणुरत्तो कुमरो चिट्ठइ रयणसेले ॥ ६८१ ॥ ता राय ! तए जमहं पुट्ठा कुमरावहारवुत्तंतं । सो तुह कहिओ त्ति पयंपिडं ठिया देवया मोणे ॥ ६८२ | कुमरीए सुयं सव्वं पि रायपासम्मि सन्निविट्ठाए । तीए वि जाइस्सरणेण जाणिया दो वि पुव्वभवा ॥ ६८३ ॥ तो दढयरमणुयन्नं कुमरिं नाऊण पुव्वभवदईअं । रन्ना वाहरिय अहं आइट्ठो कुमरआणयणे ॥ ६८४ ॥ तो मणिविमाणविंदारूढेहिं खयरेहिं सहिओ हं । पत्तो कुमारपासे नमिय जिणिदं सबहुमानं ॥ ६८५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५५ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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