SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ तो उप्पइय नहेणं गुरुणा सद्धिं गिरिम्मि तम्मि गया । पडिबोहमहीए कयं जिणालयं फलिहमणिघडियं ॥ ६६० ॥ जोयणमाणसोहं कंचणकलसोहमोहसंजुत्तं । नवपउमरायमणिमय अमलामलसारयसमूहं ॥ ६६१ ॥ उरसिहरनियरमणिदंडमंडली अनिलतरलकेऊसु । रणझणिरकिंकिणीखलहलंतघरघरयरवरम्मं ॥ ६६२ ॥ चउपासपरिट्ठियपंचरायमणिजणियदेवउलियाहिं । कयपरिवेढं माणिक्कतोरणं रयणवाविजुयं ॥ ६६३ ॥ तम्मि जुयाइजिणिंदो पइट्ठिओ सूरिणा सुवन्नमओ । सेसाई बिंबाई समयविहाणेण तव्वेलं ॥ ६६४ ॥ काऊण विभूईए दसाहियाओ पइट्ठियं नामं । जिणमंदिरस्स अमरासुरेहिं वानरविहारो त्ति ॥ ६६५ ॥ कय - कायव्व त्ति सुरा मुत्तुं वेयड्ढपव्वयम्मि गुरुं । पत्ता सुरालए गणयंति सुरलोयसोक्खाई ॥ ६६६ ॥ मंदर - नंदीसर - रयणसेल - जिणमंदिरेसु पडिमाओ । पूयंति तहा विरहंततित्थनाहे य भत्तीए ॥ ६६७ ॥ इय अमरलोयसुक्खं अट्ठारससागराइमाणेउं । चविऊण अणंततेओ अमरो नियआउस्सते ॥ ६६८ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं चंदउररायचंदावयंसचंदावलीए भज्जाए । जाओ पुतो नामं विहियं से चंदसेण त्ति ॥ ६६९ ॥ सो अज्ज गयग्गहियं महिलं मोयाविऊण जा जाओ । ईसिपमत्तो गहिउं ता खित्तो हत्थिणा गयणे ॥ ६७० || केणावि अदिस्सेणं हरिडं खित्तो इमम्मि मयरहरे । गिलिओ य मच्छरणं दारिय तं गिरिसिरे चडिओ ॥ ६७१ ॥ सो हं देवं च दट्ठूणमह मे जाइसरणमुप्पन्नं । कारावियममरत्ते सए इमं देवभवणं ति ॥ ६७२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy