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गिहिधम्मे चंदसेणकहा
३१ होइ अहंकारो वि हु जिम्हस्स वि जोव्वणे समुल्लसिए । जायइ य जलाहिणो वि हु विसमट्ठमि-चउदसि तिहीसु ।। ३६७ ॥ सुविवेइणो वि पायं होइ वियारो य जोव्वणारंभे । कंजियजोए जाए विणस्सए निद्धमवि दुद्धं ॥ ३६८ ॥ ता वच्छ ! जुव्वणम्मि वि वट्टेज्जसु वुड्ढसरिसचरियम्मि । जत्तो हवंति गुरुयत्त-दीहदरिसित्त-कित्तीओ ॥ ३६९ ॥ रूवाइगव्वमुज्झिय जत्तो जुत्तो सया गुणग्गहणे ।। जलमिस्सिए वि दुद्धे दुद्धं चिय पियइ कलहंसो ॥ ३७० ॥ विगुणो कमणीओ वि हु हरियणुमिव झत्ति पावइ विणासं । विलसइ वंसग्गठिओ सुचिरं पि धओ व्व गुणवंतो ॥ ३७१ ॥ गुणरयणालंकरियं सिंगारिणमिव पलोयए लोगो । अकयगुणे धणुहम्मि व न कोइ दिठि पि संठवइ ॥ ३७२ ॥ ता वच्छ ! अज्जिऊणं गुणनियरं तं करेज्ज गुणगोटिंछ । जेण कयाइ कुबुद्धी विद्धिं न लहइ सुयणमिलणे ॥ ३७३ ॥ तह दुस्सीलपियाए व लच्छीए मा करेज्ज पडिबंधं । पुरिसंतरेसु जं सा तीरइ न निलंभिडं जंती ॥ ३७४ ॥ खणमेत्तमलंकरिडं जयं पि जह जाइ झत्ति विज्जुपहा । तह लच्छी वि हु पुरिसं ता तीए चलाए को मोहो ? ॥ ३७५ ॥ .. खीरोयसुया वि हरिप्पिया वि पविसइ घरेसु अविरामं । लच्छी नीयाणं पि हु कत्तो महिलाण मज्जाया? || ३७६ ॥ ता वच्छ ! अलच्छि चिय लच्छि चिंतेज्ज, जेणिमाए कए । मारिजति सिणिद्धा वि बंधुणो सामिणो य सयं ॥ ३७७ ॥ तह वच्छ ! मयच्छीओ विहिणा विहियाओ कालकूडेण । कहमन्नहा नराणं तज्जोए होइ सम्मोहो ? || ३७८ ॥ पाउससरियाओ विव रोद्दरसुव्वेयकारिणीओ धुवं । परमत्थवज्जियाणं रिउसेणाओ व्व दिति भयं ॥ ३७९ ॥
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