________________
३०
अह अन्नया सहामणिसीहासणसंठिए महीनाहे । उच्छंगियपिउपाए पायवीढठिए कुमारम्मि ॥ ३५५ ॥ मंद मंद दोपासनरकरालंबविहियसंचारो । मंती वियारचउराभिहाणओ तत्थ संपत्तो ॥ ३५६ ॥ दठुमवट्ठियबावत्तरीकलं सोलसकलो चंदो । सेवइ सियभमुहकलाहिं जं समत्तं व मग्गेउं ॥ ३५७ ॥ सहइ सियावणिदंडो नट्ठो पिट्ठीए जस्स सेसो व्व । न सहइ एसो परमहिहराण इय जाय संतासो ॥ ३५८ ॥ पासट्टियाए वि मए विलसइ नीईए एस अणुरतो । इय ईसावसयाए व तणूए जो सिढिलिओ बाढं ॥ ३५९ ॥ सणियं पणमिय निवपायपंकयं मंदमंदमुवविट्ठो । गूढयररज्जकज्जाई मंतिउं राइणा सद्धिं ॥ ३६० ॥ तो निययरूवरमणीयतणुलयाहरियरइवइविलासं । रायगरुहं अवलोइऊण मंती इमं भणइ ॥ ३६१ ॥ निस्सेससत्थपरमत्थवित्थराऽऽयरणविमलमइणो वि ।
दाउ वियक्खणस्स वि सिक्खं वच्छस्स इच्छामि ॥ ३६२ ॥ दाउं तुह जणयस्स वि सिक्खं सइ वच्छ ! मज्झ अहियारो । किं पुण तज्जायाणं भवारिसाणं विणीयाणं ? ॥ ३६३ ||
सिरिअणंतजिणचरियं
तो नमिरसिरेणुत्तं कुमरेणं मंतिओ सम्मुहमेव ।
इय जंपता तुज्झे ताय ! पसायं कुणह मज्झ ॥ ३६४ ॥ उस्सिखलया जायइ ताण न जे सिक्खवंति नियगुरुणो । ता मज्झ देह सिक्खं ति, भणइ मंती वि सुसु' त्ति ॥ ३६५ ॥ (वुड्ढमंतिदिन्नारायकुमारस्स सिक्खा)
सत्ताण असतो वि हु कत्तो वि समेइ जोव्वणे राओ । पूयप्फल-चुण्णय- नागवल्लिदलचव्वणे व्व धुवं ॥ ३६६ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org