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________________ सिरिअणंतजिणचरियं जइ हुंती हरणेच्छा तुह मह ता देव्व ! किं सुओ दिन्नो ? । दिज्जइ किं पढमं पि हु ? जं पच्छा वि हु हरेयव्वं ॥ ४७९ ॥ कुमरावहारदुहिया रुयंति सामंत मंति-मंडलिया । हाहारावाऊरियनह - महिमंडलमहाविवरा ॥ ४८० ॥ विन्नायजायहरणा मरणावत्थ व्व होइ मुच्छाए । वारं वारं देवी परिदेवणगब्भम्मियरुइरी ॥। ४८१ ।। हा हा ! अहं अहन्ना किं न विवन्ना पसूइपीडाए ? 1 जह न सहंती एवं वल्लहपुत्तावहारदुहं ॥ ४८२ ॥ वंझाओ वराईओ वराओ, दुहियाओ जा न सुयहरणे । किं मज्झप्पसवेणं एरिस असुहेक्कमूलेण ? ॥ ४८३ ॥ जइ फुट्टिऊण हिययं सहस त्ति अहं मरामि निहयासा । ता पुत्तविओयहुयासदुसहदाहस्स छुट्टामि ॥ ४८४ ॥ थइयावह - पडिहारंगरक्खसहिसो विदल्लपमुहजणो । अक्कंदसद्दपूरियदियंतरो रूयइ इय भणिरो ॥ ४८५ ॥ सिंगारो आणंदो लीलाओ मंगलीयतूररवे । कुमरपहमुवगया इव जमिमाणेगं पि इह नत्थि ॥ ४८६ ॥ इय दूरं विप्फुरिए सोयम्मि कुमारहरणसंभूए । भणिओ वियारचउरेण मंतिणा एवमवणिवां ॥ ४८७ 11 होऊण देव ! दढमाणसो तुमं सुयनिरिक्खणोवायं । चिंतसु, निरुज्जमाणं रुइराणं किं सुओ वलइ ? ॥ ४८८ || रायाऽऽह मंति ! जं किं, पि मुणसि तं कुणसु, वालसु सुयं मे । जेण मह रज्जचिंता सव्वा वि सया तुहाऽऽयत्ता ।। ४८९ ॥ ॥ तो मंतिणा निउत्ता कुमरनिरिक्खणकए गुरुजवेहिं । तुरएहिं भडा भणिउं निरिक्खिउं कुमरमेहति ॥ ४९० ॥ (रायकुमारस्स मीलणं) तो तेसु गएसु दिणम्मि पंचमे सोयनिरसणम्मि निवे । संतेउरे सव्वेऽऽलावित्ते य विमुक्कसिंगारे ।। ४९९ ।। For Private & Personal Use Only ४० Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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