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________________ गिहिधम्मे चंदसेणकहा धणुगुणठावियबाणा रायाणावत्तिणोऽवरे वि भडा । परिवेढंति समंता तं दुट्ठगयं चउप्पासं ॥ ४६६ ॥ आयड्ढिय असिधेणुं रुभिज्जंतो वि मंडलीएहिं । वेगेण नरिंदो वि हु जा चलिओ हत्थिहणणत्थं ॥ ४६७ ॥ तो उल्लालिय खित्तो कुमरो करिणा झड त्ति गयणयले । भडभीएण व तस्स वि भडघायनिवारणत्थं व ॥ ४६८ ॥ जायइ य सो तह च्चिय उड्ढदिसाए गएण जहुखित्तो । न वलइ सुमत्तगुरुदंतिदंतनिब्भयभीओ व्व ॥ ४६९ ॥ तो उड्ढं चिय जंतं दळूणं निवइमाइओ लोगो । ‘एसो कुमरो एसो कुमरो जाई त्ति जंपेइ ॥ ४७० ॥ तो उग्गीवाणुत्ताणियच्छिजुयलाण नयरलोयाण । पेच्छंताण वि जाओ नयणाणमगोयरो कुमरो ॥ ४७१ ॥ अनियंतो नियपुत्तं राया मुच्छाए कुट्टिमे पडिओ । पुत्तवियोगदुहत्तो नज्जइ पाणेहिं मुक्को व्व ॥ ४७२ ॥ निवडंतो उत्ताणो पडिओ नज्जइ नरेसरो निययं । करिनिहियनिययपुत्तयनहमग्गं पिव पलोएडं ॥ ४७३ ॥ दिव्ववसघडियकरपुडकोसो रइयंजली निवो भाइ । अवहारकरमदिस्सं पेच्छिउकामो व्व नियतणयं ॥ ४७४ ॥ अह मंडलीय-सामंत-मंतिलोएण सिसिरकिरियाहिं । संपाविय-चेयन्नो सहस त्ति महीवई विहिओ ॥ ४७५ ॥ तो पागयपुरिसो विव सोयमहाभल्लिसल्लियसरीरो । पलवइ बहुदुक्खभरो कयकारुन्नो पसूणं पि ॥ ४७६ ॥ (रायाईणं सुयविओगे विलवणं) हा वच्छ ! गरुयमाणस ! माणससरसच्छ ! तुच्छयारहिय ! मह देसु दंसणं जा सहस्सहा फुडइ नो हिययं ॥ ४७७ ॥ हा अन्नायनिवारण ! हा दारुण ! दारुणारिसत्थस्स । हा निक्कारणवच्छल ! हा पच्चल रज्जकज्जेसु ॥ ४७८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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