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गिहिधम्मे चंदसेणकहा भणियाई अवज्जाई तुह संमुहं सामि ! अकहणिज्जाइं । एवं ठियम्मि देवो जं जुत्तं तं समायरउ ॥ ५४३ ॥ तेणंऽतो कलुसेणं बाहिं पुण पउमवियसियमुहेण । भणियं जइ नियकन्नं न देइ ता तस्स किमजुत्तं ? || ५४४ ॥ परिभावियं च चित्ते निवपुत्ते नूण जीवमाणम्मि ।। सा मह न चेव होही ता तं मारेमि पच्छन्नं ॥ ५४५ ॥ चित्तम्मिं कलुसो वि हु करेइ हासाइयं सह सुहीहिं । अंकारोवियहरिणो किन्न महिं धवलए चंदो ? || ५४६ ॥ दुइयदिवसम्मि सो नयणमोहणीविज्जसुमरणअदिस्सो । कुमरं हरिउं चलिओ, को पयडमकज्जमायरइ ? ॥ ५४७ ॥ जम्मि समयम्मि कुमरो करिणा उल्लालिओ नहे खित्तो । तम्मि समयम्मि पत्तो कयसंकेउ व्व खयरिंदो || ५४८ ॥ तयणु अदिस्सो च्चिय सो तं गहिउं उड्ढमेव उप्पइओ । पुन्नोदओ व्व जीवं संगहिउं सग्गमग्गम्मि ॥ ५४९ ॥ पवणजइणा जवेणं तो सो चलिओ दिसाए पुवाए । पेच्छइ लवणसमुदं उल्लसिरं निययपावं व ॥ ५५० ॥ भुवणगुरू जो पसरंतधीवरो भूरिसंखसत्थकरो । सययं पि जडप्पयई वि कोऽहवा मुणइ गुरुचरियं ? ॥ ५५१ ॥ सद्दलनीलो डिंडीरपंडुरो विद्दुमारूणो सामो । ठाणे ठाणे रेहइ जो वन्नयविहियचित्तो व्व ॥ ५५२ ॥ जो सामलपक्खनिसातममिलणालक्खसलिलसंठाणो । नज्जइ न वि निउणेहिं विलुक्कणकीला अदिस्सो व्व ॥ ५५३ ॥ जो घोरगज्जिएहिं कुविओ व्व निवारए खयरनाहं । मा निरवराहकुमरं खिविउं पावं करेज्ज त्ति ॥ ५५४ ॥ तम्मि गुरुतरकरिमयरमयरबहुमच्छ-कच्छवाइन्ने । निक्खित्तो रायसुओ तुह तणयालुद्धखयरेण ॥ ५५५ ॥
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