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सिरिअणंतजिणचरियं आलोयगयं दलु कणयमयं पंचधणुसयुच्चतणुं । जय इत्ति जंपिय कयकरकोसो नमइ रिसहं ॥ ५८२ ॥ पेच्छिज्जंतो विम्हियवियसियनयणाहिं अमरतरुणीहिं । अवलोइज्जतो आयरेण खेयरपुरंधीहिं ॥ ५८३ ॥ असरिसउदारदेहेण देव-दाणवसिरि विडंबंतो । को एसो ? त्ति सकोउगमिक्खिज्जंतो नहयरेहिं ॥ ५८४ ॥ लीलागमणविडंबियकलहंस-करेणुमंथरगईए । गंतुं जिणपयपउमंतिए पहुं नमइ भत्तीए ॥ ५८५ ॥ पहुमुहकमलनिवेसियनियनयणब्भमरमिहुणओ कुमरो । आबद्धपाणिपंकयकोसो थोउं समारद्धो ॥ ५८६ ॥ जय नवसायरतारणकारणसग्गापवग्गसोक्खाण । जय दुरियदारुदारणदारुणकरवत्तपत्तसम ! || ५८७ ॥ निवनाहिरायकुलजाय ! जायरूवाण नेह ! गुणगेह ! ।। सिरिरिसहसामि । सामी भवेज्ज आभवनिवासं मे ॥ ५८८ ॥ इय थोऊणं उल्लसियभत्तिपन्भारपुलयकलियंगो । आणंदअंसुजलजुयकवोलफलओ पुणो नमइ ॥ ५८९ ॥ निस्सेसदेवउलियाजिणेसरे वंदिउं सबहुमाणं । जिणभवणरामणीयगसमं कुमरो निरिक्खेउं ॥ ५९० ॥ उवविट्ठो पेच्छामंडवम्मि जिणमुहमयंकगयदिट्ठी । पुव्वंपि मए दिटुं जिणभवणमिणं ति कइया वि ॥ ५९१ ॥ इय ईहापोहपरस्स तस्स सहस त्ति आगया मुच्छा । तो सो माणिक्कमयम्मि कुट्टिमे निवडिओ झत्ति ॥ ५९२ ॥ तो झत्ति ससत्तीए विहिओ अमरेहिं सो सचेयन्नो । मुच्छावगमे उट्ठइ निब्भरनिद्दो व पडिबोहो ॥ ५९३ ॥ परिपुच्छिओ य खयरामरहिं नररयण ! मुच्छिओ किमिह ? | कुमरेणुत्तं निसुणह तुब्भे मुच्छाए हेडं मे ॥ ५९४ ॥
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