SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रणविक्कमकहा एवं तव्वयणेणं सलिलं व मणं कुजोयकलुसं पि । कुंभसुयस्सुदएण व सच्छत्तं जोइणो पत्तं ॥ २४७४ ॥ तस्सिक्खाए सहस त्ति अवगयं तिव्वमोहपडलं से । भवपरिभमणुब्भूयं, पावं व जिणिंददिक्खाए ॥ २४७५ ॥ उच्छलियविवेओ, अन्नाणं हरिय सूइयसुधम्मो । अरुणोदओ व्व तिमिरं, विद्धंसिय रविउदयहेऊ ॥ २४७६ ॥ तो जोइओ पयंपइ, विणई रणविक्कमपई पहिट्ठो । भो पुरिसरयण ! भुवणे वि तुह समा सज्जणा विरला || २४७७ ॥ तं चिय महोवयारी, मह जाओ जेण नरयकुहराओ । आयड्ढिओ हढेणं इत्थी-वहपाव-पडिओ हं ॥ २४७८ ॥ तुम्हारिसाण जम्मो, जयोवयाराय जायए नियमा । अमयकराणुग्गमणं, भुवणस्स सुहाय वा भवइ ॥ २४७९ ॥ सुयणाण घणाणं पिव, जणोवयारा य होइ अब्भुदओ । सो च्चिय लोयविणासाय धूमकेऊण व खलाण ॥ २४८० ॥ नूणमणुप्पत्ति च्चिय सया वि अम्हारिसाण सेयकरी । जेसिं जम्मो जायइ एवंविहपावभरपत्तं ॥ २४८१ ॥ भूरिभवब्भमणज्जिययपावेण वि किं पि सुचरियं पि कयं । जेण मए तं पत्तो धम्मगुरू एरिसेऽवसरे ॥ २४८२ ॥ ता जावज्जीवं पि हु नियपाणा इव समग्गजीवा मे । • जं मण-वय-काएहिं काहं न कयाइ ताण वहं ॥ २४८३ ॥ एयं नरिंदतणयं अप्पिज्जसु तं निवस्स गोसम्मि ।। पुव्वं पि हु तुह कहियं, कज्जमिमाए जमाणयाण ॥ २४८४ ॥ समइक्कंते दिवसे मयणसिरी पव्वयाओ गयणेण । इंतेण सिट्ठिसुया दिट्ठा सुहलक्खणसमेया ॥ २४८५ ॥ तो मा तं बलिनिमित्तं चेडयसप्पेण हरियचेयन्ना । विहिया इह जा चिट्ठइ मडयं ति मसाणमज्झम्मि ॥ २४८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy