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सिरिअणंतजिणचरियं होमेणमिमाए किर साहिस्सं सव्वसिद्धिकरमंतं । तस्स वि पावस्स अहं पुरिसुत्तम ! मोइओ तुमए ॥ २४८७ ॥ ता गिण्हसु विसनासणमंतं एयं करेज्ज विसरहियं । गंतुमहं पावाणं, पायच्छित्तं चरिस्सामि ॥ २४८८ ॥ इय जंपिऊण जोईसरेण उत्थंभिऊण तं तस्स । दिन्नो थावरजंगमउग्गविसविणासणो मंतो ॥ २४८९ ॥ तो गहिडं तं मंतं पभणइ रणविक्कमो महासत्त ! । तं चिय सकयत्थो, नूण जेणमंगीकया सिक्खा ॥ २४९० ॥ चुक्कखलियाई न इंति, कस्स संसारमहिवसंतस्स । ता तह सया जइज्जसु, कयाइ मइलिज्जसे न जहा ॥ २४९१ ॥ इय तब्मणिए गयणंगणेण उप्पइय जोइंदम्मि गए । कस्स सुया सुयणु ! तुमं, ति पुच्छिया कन्नया तेण ॥ २४९२ ॥ सा आह-अहं मयणस्सिरि त्ति उज्जेणिनयरिनाहसुया । सुत्ता संती सत्तिए झत्ति इह आणियाणेण || २४९३ ॥ नररयण ! इह न जइ तं इंतो जंतीहमेत्तियं वेलं । ता सलहत्तं जलिरे कुंडहुयासे हयासहुया ॥ २४९४ ॥ ता मह जीवियदायग ! रायगरिठ्ठो भवेज्ज अज्जेव । नंदाचंदक्कंतं कंतं कित्तिं समज्जितो ॥ २४९५ ॥ विरल च्चिय तुह सरिसा, पुरिसा उवयारकारया भुवणे । जच्छंति वंछियं जे दुमा न ते हंति सव्वत्थ ॥ २४९६ ॥ इय जंपिरि कुमारिं जंपइ रणविक्कमो कुरंगच्छि ! । तं नियपुन्नेणं चेय जीविया न मह साहेज्जा ॥ २४९७ ॥ इय भणिरो तीयुत्तो सो सेट्ठिसुयाए हरसु विसवेयं । लब्भइ मतपरिक्खा परोवयारो य होइ कओ ॥ २४९८ ॥ तो तव्वयणाणंतरमुठेउमणुट्ठियं तयं तेण । सुत्तविबुद्ध व्व झत्ति उठ्ठिया सेट्ठितणया वि ॥ २४९९ ॥
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