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________________ रणविक्कमकहा २४१ पज्जालियम्मि तम्मि संझासमओ घणंधयारो त्ति । वलिऊण गओ लोगो सव्वा वि निए निए ठाणे ॥ ३०६९ ॥ तम्मि समयम्मि गयणं दिसि दिसि सामलघणेहिमावरियं । बहुपावेहिं व तीए रुद्धो सग्गापवग्गपहो ॥ ३०७० ॥ हरिधणुगणधरगयणा निवडइ आसारवारिधाराली । सरधोरणि व्व हरिणा पम्मुक्का तीए खलणत्थं ॥ ३०७१ ॥ उज्जोइयजयगब्भा दिसि दिसि झंपाहिं पसरए विज्जू । नासइ वियग्गिजालावलि व्व तद्दाहपावभया ॥ ३०७२ ॥ सव्वत्तो च्चिय मत्ता सिहिणो केक्कारवेहिं अणवरयं । मरणाणंतरमेव य तीए कहंति व नरयगई ॥ ३०७३ ॥ गज्जतो गंभीरस्सरेण नवजलहरो नहे भमइ । तीए अकज्जदुम्मरणकारणे पयडपडहो व्व ॥ ३०७४ ॥ सपयावो वि हुयासोवसारिओ वारिवाहसलिलेण दिसि रोही तीएऽजसो व्व असरिसाकज्जकरणेण ॥ ३०७५ ॥ तीईए सिबियानलपलित्तदेहे पवढिओ दाहो । अकज्जज्जियनारयवज्जानलसंचकारो व्व ॥ ३०७६ ॥ पसरंतेणं गंगाजलेण दाहिणदिसाए कुट्ठविया । निज्जइ य जीवंती वि हु जमरायउवायणत्थं वा ।। ३०७७ ॥ खित्ता तीरे नेऊण दूरे देसम्मि नीरपूरेण । मा मे पावासंगेण होउ पावं ति कलिउं व ॥ ३०७८ ॥ नइतीरवासि गोउलियं गामणी गोवई निहाणो जो ।। नियकज्जेणं तत्थागएण सा तेण सच्चविया ॥ ३०७९ ॥ जलसुट्ठियसमग्गंगा गंगासरितीरवालुआपुलिणे । कट्ठत्तपत्तपाणे पाणासणवज्जिया वेसा ॥ ३०८० ॥ (जुयलं) तो उप्पाडिय सगडे चडाविडं नेइ तं नियावासे । पासेइ पयत्तेणं दुत्थेसु दयालुया गुरुणो ॥ ३०८१ ॥ ॥ ३०७५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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