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सिरिअणंतजिणचरियं
ता जुज्जइ उज्जमिउं सासयसिवसुहपसाहर धम्ने । जेणत्तो न भवावडपडंतजणहत्थअवलंबो ।। ५६१७ ।। इय परिभाविय संवेगवसए सप्पंतसुद्धर्भ वित्त । संवरइ क्वहारे लेइ कयाणाइं सपुरत्थं ।। ५६१८ ।। मोयावए निवाओ, पणमित्तु दुहा वि अप्पमायरउ । भणई य तुहप्पसाया सामि ! अहं इह सिरिं पत्तो ॥ ५६१९ ॥ पत्तो पहु ! तुह पाया दुम्मोया असमनेहनद्धस्स । एत्तो य वुड्ढअम्मा-पियराणि वि पालणिज्जागि ॥ ५६२० ॥ इय परिभाविय सामी ! जं जुत्तं तं समाइसउ मज्झ । जं न कयाइ वि अप्पच्छंदा पहु ! सेवया इंति ॥ ५६२१ ॥ तं सोउं नरनाहो भणइ अहं मित्त ! तं न मुंचने । किंतु तुहम्मा-पिउणो ममा वि अच्चंतगोरव्वा ॥ ५६२२ ॥ गुरुलाघवव ज्ज विभावएण पुरिसेण मित्त होयव्वं । नियदंसणामएणं ता गंतुं ताइं निव्ववसु ॥ ५६२३ ॥ इय जंपिउं महग्घाभरणसुवत्थाई देइ से राया । जणणी-जणयनिमित्तं च वियरए ताणि पउराणि ॥ ५६२४ ॥ तो रायाणुन्नाओ मोयाविय सत्थवाहमित्तं सो । सकलत्तो संचलिओ निवपेसिय तंतवालजुओ ॥ ५६२५ ॥ तुरयारूढो हयविंदपरिगओ छत्तअंतरियतरणी । अणुगम्मतो वसहुट्ट-महिस-खर-सगडसत्थेण ॥ ५६२६ ॥ रह-सिविय-सेज्जवालय-लंघिणियसुहासणाइजाणेसु । आरुहइ पहम्मि, कयाइ कत्थई कोउहल्लेण ।। ५६२७ ॥ कयभूरिनरपयाणयसयलंघियपउरभूमिवित्थारो । संपत्तो कुसलेणं सगामपरिसरधरावीढे ॥ ५६२८ ॥ नाऊण नियसुयागमणमसमपरितोसपूरिओ सेट्ठी । गुरुरिद्धीए कारवइ तस्स सगिहप्पवेसमहं ॥ ५६२९ ॥
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