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________________ तवोवरिचंदकंत कहाणयं तुं तमो वसंतदेवो विधिः । एवं कह मज्झवि मरणनिमं आग आसि ? ॥ ५६०४ ।। आबालकाल न मए सुकगं कया कयं । माविभवसंभव दुण कंपामि भनि च ।। ५६०५ ।। न कयं सुकयं परीहीणमाऊयं पेच्छऊण संसारं । पसायतुंगसिद्धयउच्चओ धुव्वए हिययं ॥ ५६०६ ॥ प्रणुयत्त - आरिय-खेत्त-सुकुलुप्पत्ति पमुहसा नग्गी । मुकयसमज्जणरहिया सव्वा वि मुहे व मह जाया ॥ ५६०७ ॥ धरणी भारकर च्चिय ते जाण न धम्म - अथकामाण | रक्को वि अस्थि छाया, पुरिसाण व के. गुणो ताण ? ॥ ५६०८ ॥ ने च्चिय पुण्त्रकपयं जे बालत्ते विचिनामन्ना । सेवसिरिकडक्खलक्खं, पत्ता अइतिव्वतव चरणा ।। ५६०९ ॥ अम्हे पुणो महारंभनिब्भरुप्पन्नपुन्न - पावेण । गुरुभारमक्कंता इव निर्वाडिस्सामो नरयकुहरे ॥ ५६१० ॥ जइ साइणी करुक्खित्तकत्तिओक्कत्तिओ मओ हुतो । तो चुक्कंतो इह - भव - परभवियसुहाण हमहन्नो ॥ ५६११ ।। नवरं पुव्विल्लभवे जं जीवदयाइयं कयं किंपि । तेण मह जीवियव्वं जायं नन्नोत्थि इह हेऊ ॥ ५६१२ ॥ ता जावज्जवि न जराए जज्जरं कीरए सरीरं मे । जा नज्जइ उप्पज्जइ वियलत्तं इंदियगणस्स || ५६१३ || जाव न वाहीओ समुल्लसंति अहमहमिगाए मह देहे । तिव्वयरतवच्चरणायरणे जा विज्जए सत्ती ॥ ५६१४ ॥ परिवडइ न जाणिव्वयदंसणवसभवविरत्तिसब्भावो । जाव अवराहकुविया सयणा वि न मं परिभवंति ॥ ५६१५ ॥ जावज्जवि संपज्जइ न सिरीभंगो न होइ अयसो वि । सूलाइच्छिडुपेच्छणच्छेओ न समेइ जा मच्चू ॥ ५६१६ ॥ Jain Education International ४३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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