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________________ अणंतजिणजम्मवण्णणं जीए फुरंतरयणप्पासायपहापयट्टियालोओ । लोओ रविउदयस्स वि, न समीहइ तावकारि त्ति ॥ १२४२ ॥ जीए विरायइ मरगयकुट्टिममुल्लसियमोत्तियचउक्कं । घणनिग्घायनिवडियं, सतारयं गयणखंडं व ॥ १२४३ ॥ पसरंतरयणमयमंदिरप्पहाहरियतिमिरपसराए । अमरपुरीए व जीए, नज्जइ न रयणिदिणविसेसे ॥ १२४४ ॥ अमरपुरि व्व सुहम्मा, सियसेवा सुरमणीजणियसोहा । दीसंतगुरुविमाणा, जा सोहइ भूरितियसहिया ॥ १२४५ ॥ उव्वहइ तप्पहत्तं, रिउवारणवारदारणुड्डमरो । बहुवणविहारचित्तो, सीहो विव सीहसेणनिवो ॥ १२४६ ॥ सोमो सूरो सुगओ महेसरो सयमहो सयाणंदो । महसेणो बलभद्दो, य जो नरो वि हु सुरसुरूवो ॥ १२४७ ॥ नजति न अन्ननिवा फुरियप्पयावम्मि जम्मि संता वि । गयणम्मि तारया इव, परिप्फुरंते सहस्सकरे || १२४८ ॥ दित्ततरवारिधारा, निवायनिम्महिय तांबिलरिऊ जे । मेहो व्व रायहंसा-सत्तपओ जं तमच्छरियं ॥ १२४९ ॥ आणंदइ तस्स मणं, समग्गदुइंतपत्तसामित्ता । विमलगुणजायसुजसा सुजसा नामेण पियभज्जा ॥ १२५० ।। संपत्तपियद्धंगं गोरिं सोहग्गगब्वियं हसइ । देवी पावियवल्लहनियपियसव्वंगसंगसुहा ॥ १२५१ ॥ सावित्ती वि समत्तं न जीए पयडइ पइव्वयाए समं । जं सा जाया जाया पिया सहस्सफुरियराया ॥ १२५२ ॥ सरलासओ अरोगी, जीए पई तीए कह समा लच्छी । जं विरईयबहुमाउगयाहरो तीए भत्तारो ॥ १२५३ ॥ रायपियाए पुरो कंपहुत्तगव्वं सई वि उव्वहिही । जा लज्जइ भज्जा कोसियस्स एस त्ति सोऊण ॥ १२५४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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