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________________ १०० सिरिअणंतजिणचरियं जीए दईओ सव्वंगसुंदरो नरवई समं तीए । न रईए विसमसीसीहरेण दद्धो पिउ जं से ॥ १२५५ ॥ खंडियसकलंकससंकभारिया वि रोहीणी नो जीए । धरइ समत्तमगंजिय अकलंकअसंकदइयाए ॥ १२५६ ॥ रन्ना वि पिअवन्नाए नियइ जं से विरोयणो भत्ता । देवीए पुणो कंतो सया वि हरिसं समुव्वहइ ॥ १२५७ ॥ .. तीए सह भवसमुन्भवसुहसव्वस्स य सत्तचित्तस्स । गच्छंति भूमिवइणो दिवसा बहुविहविणोएहिं ॥ १२५८ ॥ सुकुलक्कमपत्ताणं नीइपराणं हियाण मंतीणं । रज्जसिरीभरसप्पियविलसइ सच्छंदमवणिवई ॥ १२५९ ॥ तहाहि - कइया वि करेणुवई कीलावइ रइयरम्मसिंगारो । कइया वि हए वाहइ टंपाझंपा भमिरएहिं ॥ १२६० ॥ कइया वि मणिरहारोहसोहिओ रायवाडियं कुणइ । कइया वि नरविमाणारूढो नयरस्सिरिं नियइ ॥ १२६१ ॥ लंघणिय-सुहासण-वहिल-सिबिय-वरसेज्ज-वालयाईणि । जाणाइ जहाभिमयं किं पि कयाइ वि अलंकरइ ॥ १२६२ ॥ निरवज्जरज्जलच्छि परिपालंतस्स तस्स नरवइणो । भीमत्तं संभुम्मिं कामे मारो वहो वसहे ॥ १२६३ ॥ नित्तिंसया असिम्मि भीरुत्तं कामिणीए नामम्मि । निग्गुणया हरिधणुहे विसदाणं रायहंसम्मि ॥ १२६४ ॥ अस्सच्छत्तं पिप्पलदुमम्मि तं हढयणम्मि कूरत्तं । चवलत्तं धन्नम्मिं विमणत्तमणंतनाणिम्मि ॥ १२६५ ॥ अपवत्तिया जईसुं नयभंगवियारणं समयसत्थे ।। संदत्तं सूरसुए, बंधो कुंतलकलावेसु ॥ १२६६ ।। एयाणं मज्झाओ एगयरं पि हु समत्थि न जणस्स । नरनाहपाय-पउमप्पसायसंजायसोक्खस्स ॥ १२६७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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