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सिंगारमउडकहा मइ-सुय-ओही-मणपज्जेवेहिं विमलेहिं नत्थि तिजए वि । तं किं पि जं न पेच्छइ समहप्पा नाणनयणेहिं ॥ ७४८५ ॥ भक्खाभक्खं पेयापेयं गम्मं तहा अगम्मं च ।। हेयमुवाएयं पि हु साहइ सव्वं पि भव्वाण ॥ ७४८६ ॥ पढमाए पोरिसीए साहइ धम्मं जिणो तदियराए । तस्साएसणं कहइ गणहरो जेण भणियं च ॥ ७४८७ ॥ . राओवणीयसीहासणोवविट्ठो य पायवीढम्मि । जेट्ठो अन्नयरो वा गणहारी कहइ बीयाए ॥ ७४८८ ॥ खेयविणोओ सीसगुणदीवणा पच्चओ उभयओ वि । सीसायरियकमो वि य गणहरकहणे गुणा हुंति ॥ ७४८९ ॥ इय वागरिउं विरयम्मि गणहरेऽणंतबलनरिंदाई । लोगो पणयजिणिंदो संपत्तो निययठाणेसु ॥ ७४९० ॥ देविंदामर-असुरापुहुपयसयवत्तयं नमिय पत्ता ।। नंदीसरम्मि अट्ठाहियाओ काउं गया सग्गे ॥ ७४९१ ॥ सिरि अम्मएव मुणिवइ विणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । रइए अणंतचरिए समुत्थिओ तुरियपत्थावो || ७४९२ ॥ (चउत्थपत्थावो) अह तिजयगुरूतिजयोवयारकरणुज्जुओ अओज्झाए । ठाऊण कइ वि दिवसे विहरे करणाय निक्खंतो || ७४९३ ॥ कंचणमयपंकयकयकमगमणो धणुसयद्धउच्चतणू । अच्चंतचारुचामीयरच्छविच्छायपहपसरो ॥ ७४९४ ॥ जसगणेहरपमुहसुसाहुसाहुणीसंघविहियपरिवारो । सक्काइचउव्विहसुर-निकायकय-पउरपरिवेढो ॥ ७४९५ ॥ अणुगम्मंतो य अणंतबलनरिंदा य रायविंदेहिं । थुव्वंतो सुर-खेयर-नरचरणजयजयरवेण ॥ ७४९६ ॥
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