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अणंतजिणदेसणा वायण-पुच्छण-चिंतण-परियत्तण-धम्मकहण-सब्भावा । सज्झाओ रिद्धिकरो, मोक्खफलो होइ भणियं च ॥ २१९० ॥ एत्तो तित्थयरत्तं, सव्वन्नुत्तं च जायइ कमेण । जं परमं सोक्खंगं, सज्झाओ तत्थ निद्दिट्ठो ॥ २१९१ ॥ सुत्तत्थथिरीकरणं, नवसंवेगो महंतवेरग्गं । सेहसिक्खावण सज्झायवावडाणं गुणा हुंति ॥ २१९२ ॥ रोई अढें धम्म सुक्कं झाणाई हुंति चत्तारि । नारय-तिरिय-नरा-मर-सिवगइसंसाहणाई कमा ॥ २१९३ ॥ गब्भत्थे वि हु रिउणो, हणेमि. इच्चाई चिंतणे रोइं । अटुं तु पयट्टइ-गेह-सयण-दविणाइभावणओ || २१९४ ॥ खित्तवलयदीवसायरजिणगुरुसरणाइणा भवइ धम्मं । सुक्कं तु केवलुप्पत्तिसमयसंसूयगं होई ॥ २१९५ ॥ अभितरे तवम्मिं पयम्मिं धम्मसुक्कज्झाणाई । दोन्नि वि कायव्वाई, भव्वेहिं विसुद्धसद्धाए ॥ २१९६ ॥ कीरइ काउस्सग्गो, कुसिविण-अवसउण-दुन्निमित्तेसु । तह देवयाइआराहणम्मि, कम्मक्खयाइसु य ॥ २१९७ ॥ सहसकरमंडलं जह, जयाओ अवहरइ तिमिरपब्भारं । तह बारसहा वि तवच्चरणं जीवाउ पावभरं ॥ २१९८ ॥ जाई निकाइयाइं ताई वि कम्माई तिव्वतवचरणा । नासंति धुवं बद्धपुट्ठनिहत्ताण का गणणा ? ॥ २१९९ ॥ भणिओ तवो इयाणिं भव्वा ! साहेमि भावणं तुम्ह । अक्खेवेण वि मोक्खो, जायइ जीए सयासाओ || २२०० ॥ रोद्द-ट्टज्झाणविवज्जियाण सद्धम्मज्झाणजुत्ताण । पायं कल्लाणकरी संभविभदाण सा होइ ॥ २२०१ ॥ तित्थयरचरियसारणा सुविहियगुरुगुरुयगुणगणग्गहणा । सत्ताण सा समुल्लसइ सव्वयाऽवज्जभीरूणं ॥ २२०२ ॥
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