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________________ सिरिअणंतजिणचरियं इय सव्वंगीणविसिट्ठरूवरम्माए तीए सह राया । अद्दिट्ठविप्पियाई माणइ संसारियसुहाइं ॥ ५८ ॥ (पयावरहो कुमारो) तीयऽत्थि सुओ पुरपरिहसमभुओ चंदचारुकित्तिजुओ । नामेण पयावरहो, पयावभरविजियतरणिरहो || ५९ ॥ पसरती सियकित्ती, मुउलावइ जस्स सत्तुवयणाई । अहव अमयकरजोण्हा, सम्मीलइ कमलसंडाइं ॥ ६० ॥ जस्स गुणाभिहयाणं मुयंति अंसुं रिऊण नयणाई ।। किं ससिपायप्पहया, न चंदकंता किरंति जलं ? || ६१ ॥ नयरायरायहाणी, लीलालीलावईण कुलभवणं । विउलकमलायरो, जो विलसिरगुणरायहंसाण ॥ ६२ ॥ समधूलिकीलणप्पमुहबहुविणोयप्पवुड्ढनेहेहिं । सह समवएहिं कुमेरहिं कीलिरो गमइ कालं सो ॥ ६३ ॥ जणिय सुमित्ताणंदो, वच्छं लच्छीहरो व्व रेहंतो । गंतुं सहाए निच्चं पि नमिय जणयं समुवविसइ ॥ ६४ ॥ बंधुरबुद्धिप्पमुहाण नीइनिउणाण मंतिवुड्ढाणं । रज्जसिरिभारमप्पिय विलसइ सच्छंदमवणिवई ॥ ६५ ॥ (पउमरहरायकेली रायसासणं च) तहाहि - कइया वि सच्छफालिहनरवाहिविमाणचंदसालाए । घणरायरयणरइयाए, संठिओ भमइ सक्को व्व ॥ ६६ ॥ कइया वि पियालावप्पबंधकहणुज्जओ सह सहीहिं । पविसइ सिसिरारामे विरहारूढो विओइ व्व ॥ ६७ ॥ कइया वि विलासिनर व्व कामिणीसलील व्व कुंभम्मि । दिन्नकरो कीलावइ घणथणमुत्तुंगकरिराए ॥ ६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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