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________________ पढमपत्थावो जो नियगुणेहिं सुयणे, रंजइ कलुसइ य दुट्ठ-चित्ताई । बोहइ कुमुआई ससीकरेहिं मउलइ य कमलाइं ॥ ४६ ॥ जस्स पयावो सुहयइ, सुयणे निद्दहइ दुज्जणे दूरं । सोहेइ अग्गिसोयं, अग्गी अवरं दहइ वत्थं ॥ ४७ ॥ धवलं करेइ वि जयं, जस्स जसो रिउमुहाई सामाई । आलोयं देइ रवी, जणाण घूयाणमंधत्तं ॥ ४८ ॥ (पउमावई देवी) तस्सऽस्थि हत्थिकुललीलगामिणीकामिणीसिरोरयणं । कंता पहुत्तनिज्जियपउमा पउमावई नाम ॥ ४९ ॥ कुंकुमरसच्छडासेयअरुणमणिभवणकुट्टिमे जीए । संचरणरंजिया इव, सहावसोणा सहति कमा ॥ ५० ॥ जइ हुतं सुकरिणो, करजुयलं कुंकुमारुणच्छायं । ता हुंतं जीए जंघजुत्तऊरुणमुवमाणं ॥ ५१ ॥ लायण्णरसो जीसे, विलसइ नाहिदहे गहीरम्मि । नयणंजलीहिं कहमन्नहा निवो पियइ तं सययं ? ॥ ५२ ॥ जीए घणत्थणलायन्ननीरउरधरणकारणेण सयं । पालित्तयं व विहिणावलित्तयं णिम्मियं मज्झे ॥ ५३ ॥ जीए कंकेल्लिलय व्व रत्तकरकिसलयाओ बाहाओ ।। कहमन्नहा निवइणो, तच्छाया तावमवहरइ ? ॥ ५४ ॥ अमयावासो जीसे, वयणं कहमन्नहा पहसिरी सा । । सियदंतपंतिकंति, पीऊसं पिव समुग्गिरइ ? |॥ ५५ ॥ सियसरलतरललोयणकडक्खनिक्खेवओऽणुवेलं पि । जा विरयइ सयवत्तोवहारमिव कुट्टिमतलम्मि ॥ ५६ ॥ सिरकयसियचूडामणिकिरणावलिरंजियं चिहुरभारं । .. मुत्ताहलमालावलिसमलंकरियं व जा वहइ ॥ ५७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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