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________________ 2005 तवोवरिचंदकंतकहा नवरं बहुया विसए विद्देसं वहइ सासुया अहवा । बहुयाण सासुयाणं पुव्वनिबद्धाई वेराई | ४७७४ ॥ चिंतइ य न मह बहुया विणयप्पडिवत्तिमायरइ पावा । पायं न नमइ नारी, पदं गोरवजायगुरुगव्वं ॥ ४७७५ ।। जइ दइओ गोरव्वे, ता तज्जणणी वि होइ गोरव्वा । जइ पूइज्जइ पुज्जो, किमपुज्जइ पुज्ज - पुज्जो तो ? || ४७७६ ॥ पइणो गोरव्वा हुंति न कुणए किं पि गेहकरणिज्जं । साहंकारा रामा, अवरा वि न किं पिया पइणो ? ॥ ४७७७ सोहग्गवाय भग्गं पउणं अंगं न अन्नहा भविही । एयाए पाणपियवल्लहविरहो सहं मोत्तुं ॥ ४७७८ 11 संतीए सत्तीए जे अवयारं परस्स न करंति । नूणं निवडंत च्चिय ते विच्छन्ने अणत्थम्मि || ४७७९ ।। जो न समईए समयम्मि कप्पिउं किं पि नायरइ अहिए । सो तेण व कयाइ वि कयत्थिउं हम्मए नियमा ॥ ४७८० ॥ नेहपरम्मि सिणेहं, वेरं वेरिम्मि जे न कुव्वंति । नियमइदविणदरिद्दा, नियमा नंदंति न चिरं तो ।। ४७८१ ॥ नियबुद्धिपगरिसेणं, ताहं तह कह वि उज्जमिस्सामि । एईए जहा जाय, नियपियविरहुब्भवं दुक्खं ॥ ४७८२ ॥ जेण जुवईण नन्नो जणयाइ जणो तहा पिओ होइ । परिवड्ढमाणनेहो जह भत्ता जेणिमं भणियं ॥ ४७८३ ॥ बालत्तणम्मि पिय- माइ-बंधुसहियायणो पिओ होइ । आरूढजोव्वणाणं, जुवईण पिओ पिओ इक्को ।। ४७८४ ॥ पियसंगे अच्चतं, सोक्खं दुक्खं अईवपियविरहे । नवजोव्वणपाणे जायइ, सयाइ हत्थे जमुत्तं च ॥ ४७८५ ॥ पियसंगमाओ न परं सुहमिह विरसम्म जीवलोगम्मि । तव्विरहाओ दुक्खं न किंचि अन्नं जए गरुयं ॥ ४७८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३७३ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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