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________________ ३७२ सिरिअणंतजिणचरियं निम्मलकलाकलावुल्लसंतचित्तो ससाहिया वासो । संपूरियप्पयासो, रेहइ छणरइणिगमणो व्व ॥ ४७६१ ॥ पुन्नाओ सिरिवच्छो, सरलो दीहं वओ असोओ य । सेट्ठिसुओ तरुरूवो, वि जं मणुस्सो तमच्छरियं ॥ ४७६२ ॥ अच्चंतउज्जलगुणालंकारधरा जणच्छिसुहजणणी । सद्धम्मचारिणी से समत्थि चंदावली नाम || ४७६३ ॥ कन्नजुयला वयंसियएक्केक्कन्भमिरभमरनलिणेहिं । जेउं उवंति णयणं कयनयणचउक्क व्व जा सहइ ॥ ४७६४ ॥ अच्चब्भुयरूवधरा अभग्गसोहग्गसम्मचंगंगी । लायन्नगुणमणुन्ना सिरीससोमणससुकुमाला ॥ ४७६५ ॥ तीए सह विविहविसयाभिसंगवामोहमोहियमणस्स । खणमेत्तं पिव वच्चंति, वासरा सेट्ठितणयस्स || ४७६६ ॥ कप्पूरागरु-मय-णाहि-मिस्स-चंदण-विलेवणासोओ । भमिरस्स तस्स दिसिचक्कवालमावरइ सपियस्स || ४७६७ ॥ चद्दरचीणंसुयदेवपडिपमुहविविहवत्थाई । परिहइ सकलत्तो सो विसहरनिम्मोयमउयाइं ॥ ४७६८ ॥ वज्जावलिविलसिरपउमरायमाणिक्कभूसणसएहिं । समलंकरइ सरीरं सपिओ वि सया ससिंगारी ॥ ४७६९ ॥ अइवाहइ गिम्हुम्हं, मिउं दोलासेज्जतूलियारूढो । धाराहरजलधाराकणवहवाउद्धसियरोमो ॥ ४७७० ॥ कीलागिरिसिरमंदिरघणमणिमयमत्तवारणासीणो । आसारवारिधारावरिसं पेच्छइ वरिसयाले ॥ ४७७१ ॥ सीयसमयम्मि कुंकुमकयंगराओ निगूढगिहगन्भे । चिट्ठइ सगडी-अंगार-डज्झिरागरुसुयंधम्मि ॥ ४७७२ ॥ इय कालोचिय उब्भडभोयाणुभवुब्भवंतभूरिसुहो । विलसइ सो सह नवरम्मपेम्मरसवसइ दईयाए ॥ ४७७३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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