________________
अणंतजिणवण्णणं
तो पहुणा सम्माणिय, विसज्जिया अमर - खयर - नरवइणो । पणमिय पहु पय- पउमा, पत्ता सव्वे वि सट्ठाणे ॥। १८५४ ॥ तिहुयणनाहो निययप्पभाव - उवसंत - डमर - डिंब - भयं । परिपालइ निरवज्जं, रज्जसिरिं पसरियपयावो ।। १८५५ ।।
पहुपट्टमहादेवी, कयाइ रयणीकयविरामसमयम्मि ।
सिविणे नियइ अणतं, करि - हरि - रह - सुहड - रूवबलं ॥ १८५६ ॥ तं दठ्ठे पडिबुद्धा, मुत्तुं सरि- पुलिणपिहुलपल्लंकं । चलिया कंचणमंजीरजायझंकारकमणीया ॥ १८५७ ।। पत्ता सामिसमीवे, उवविट्ठा मणिमयम्मि पयवीढे । विन्नवइ ! देव दिट्ठ, बलं अणंतं मए सिविणे ।। १८५८ ॥ ता सामिसाल ! किमिमस्स होहिही मज्झ सिविणयस्स फलं ? | तो भुवण - पहू पभणइ, पुत्तो तुह होहिही सुयणु ! ॥ १८५९ ॥ आयन्निडं पहुत्तं, तो सा परिओसपूरिया दूरं ।
तुम्ह पसाया एवं होउ त्ति पयंपिरी चलिया ।। १८६० ।। अंतेउरम्मि पत्ता, सुहेणमुव्वहइ गब्भपब्भारं । जगगुरुपसाय - संपज्जमाणमणवंछियपयत्था ॥ १८६१ ॥ पसवसमए पसूया, सव्वुत्तमलक्खणं सुयं देवी । कोमलकरं सुतारं, सिय- बीया बालचंदं व्व ॥ १८६२ ॥ पुत्तुप्पत्तिपहिठ्ठेण, सामिणा ऊसवुक्करिसपुव्वं । नाममणंतबलों' त्ति पइट्ठियं सिविणमणुसरियं ॥ १८६३ ॥ परिवड्ढइ सोऽणुदिणं, कित्तिप्पसरो व्व निययजणयस्स । सव्वकलाकुसलअज्झावयाण पढणत्थमुवणीओ ॥ १८६४ ॥ परमायरेण तेण वि, पाढिडं सो कओ कलाकुसलो । तो से असरिसलच्छी, दिन्ना पहुणा पहिट्ठेण ॥ १८६५ ॥ तरुणियण-नयण-निव्वुइकारणनवजुव्वणोवलंकरिओ । कुमरो अमरो व्व विभाइ, भासुराभरणदुनिरिक्खो ।। १८६६ ॥
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
१४७
www.jainelibrary.org