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________________ १४८ नरनाह - मंडलेसर - सामंत - सुयाओ रम्मरूवाओ । नवजुव्वणुव्वणाओ, कुमरो परिणाविओ पिउणा ॥ १८६७ ॥ ताहिं सह विविहकीलाविणोयवक्खित्तमणपवित्तिस्स । वच्वंति अमुणियाई, तस्स जयंतस्स व दिणाई || १८६८ ॥ समवयसिंगारिवयस्स, विसरपरिवारपरिगओ कुमरो । उवविसइ जणयपासे, अत्थाणे उभयकालं पि ।। १८६९ ॥ निरवज्जं रज्जसिरिं, परिपालंतस्स तिजयपुज्जस्स । न कयाइ कोइ आणं, हासेण वि से अइक्कमइ || १८७० ॥ भवणवइ - वाण - मंतर - जोइसिय- विमाणवासिणो अमरा । आगंतुं कइयाइ वि, के वि हु पणमित्तु भत्ती || १८७१ ॥ गायंति निम्मलगुणे, नट्टाइं पयट्टयंति परमाई । गच्छंति य सट्ठाणे, काउणमपावमंताणं ॥ १८७२ ॥ (जुयलं ) अह - अन्नया य इंदोवणीयमणिभूसणाभिरामतणू । पावरियनायनिम्मोयमउयदेवंगवत्थदुगो ।। १८७३ ॥ सुरतरुमंजरिसेहरपरिमलपरिभमिरभमरमालाहिं । पावप्पयईहिं पिव, जो नज्जइ बहिं भमंतीहिं ॥। १८७४ ॥ मुहसोहा जियससिणा - उवायणीकयसुतारयालि व्व । जस्स विरायइ वच्छे, थूलामलमोत्तियस्सेणी ॥ १८७५ ॥ नवइंदनील - चूडामणि - किरणा सेहरासिया जस्स । सोहंति मंगलियखित्ता दुव्वादलोहु व्व ॥ १८७६ ॥ जो सव्वंगाभरणप्पहा - परिप्फुरणदुरवलोयतणू । सोहइ कयसन्नेज्जो व्व सव्वतेयस्सिनियरेण ॥ १८७७ ॥ दो पासट्ठियचलकर - कणंतकंकणकराहिं अमरीहं । जो वीइज्जइ ससहरकिरणेहिं व चारुचमरेहिं ।। १८७८ ॥ तस्स जयन्त्तयपहुणो, माणिक्कमहासीहासणगयस्स । सेविज्जंतस्सामर-निव - सामंताइलोएहिं ।। १८७९ ॥ Jain Education International सिरिअणंतजिणचरियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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