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________________ २५८ सिरिअणंतजिणचरियं बंदीकय-रिउ-रमणी-विओयतावुण्हसरलसासेहिं । उप्पाइयजणदाहं जं गिम्हरिउं सया वहइ ॥ ३२८५ ॥ निसिससिसंगमसंदिरससिमणिगिहनीरधारहरियरयं । चलगयघडघणमालं दंसइ सइ पाउसरिउं जं ॥ ३२८६ ॥ उत्तंगगयघडाचडियचलिरनरनाहसेयछत्तेहिं । भमिरसियअब्भपडलं सरयरिउं पयडइ सया जं ॥ ३२८७ ॥ पुरपरिसरबहुअरहट्टसेयनिप्पज्जमाणधन्नेहिं । विलसिरहेमंतं जं निच्चं चिय नज्जइ जणेण ॥ ३२८८ ॥ अंदोलियबहलढुमगोसावस्सायजलकणवहेहिं ।। जं जणियजणए कंपं पवणेहिं कहइ सइ सिसिरं ॥ ३२८९ ॥ इय दिसि दिसि पइपसरियरिउछक्कक्कमणमवि सया कालं । सुत्थियजणवणसिद्धिप्पवद्धियणंदसंदोहं ॥ ३२९० ॥ पसरंतकिरणगणरयणसेहरो रयणसेहरो राया ।। तत्थत्थि सुहत्थिसुहत्थिगमणनिवनियरनयचरणो ॥ ३२९१ ॥ एक्केक्ककरि-तुरंगो बहुकरि-तुरयस्स न वहइ हरी वि । सुरसायजायगव्वो वज्जियमज्जस्स जस्स सिरिं ॥ ३२९२ ।। कयपसुवइसंसग्गे विरइयगुणिगुट्ठिणो कलइ न तुलं । सरलस्स जस्स कुडिलो जणनमणिज्जो वि नवचंदो ॥ ३२९३ ॥ हरियस्सो भूरितुरंगमस्स कोमलकरस्स तिव्वकरो । सुथिरस्स जस्स अथिरो सरिसो न कयाइ सूरो वि ॥ ३२९६४ ॥ दद्धंगो निव्वणनिट्ठमुत्तिणो तिजयजणियसंतावो । जणहियकरस्स सरिसो न जस्स कामो निकाइया वि ॥ ३२९५ ॥ विरईय बहुपयवेउविलसंतगयाइवाहणगयणस्स । दिन्नकमलस्स न समो विही वि संगहियकमलो से || ३२९६ ॥ स गओ अरोयतणुणो संखकरो जस्स सतुरहिययस्स । जयमित्तस्स अरिकरो न धरइ करणिं सिरिवरो वि ॥ ३२९७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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