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धम्मदेसणा
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इह वज्जइ उड्ढाहो तिरियदिसा-तिग-पमाणाइक्कमणं । तह खित्तवुड्ढिमहसइअंतद्धाणं च पंचमयं ॥ ९२४१ ॥ एए पंचइयारा कहिया संखेवओ इयाणिं तु ।। एक्केक्कं आयन्नसु साहिप्पंतं विसेसेण || ९२४२ ।। कज्जेण वि गंतव्वं उद्धदिसिनिसिद्धखेत्तबाहिं नो । आणयणपेसणोभयपओगकरणं पि चइयव्वं ॥ ९२४३ ॥ एमेव अहो तिरियं च दिसिद्दुगं नो अइक्कमेयव्वं । अंगीकयनिययव्वयभंगभयसोवएहिं सया ।। ९२४४ ॥ अन्नदिसि जोयणाइं निक्खिविउं अन्नदिसिपमाणं पि । कायव्वा कज्जेण वि न खेत्तवुड्ढी सुसड्ढेहिं ॥ ९२४५ ॥ न पमापपरायत्तेहिं सावएहिं कयाइ कायव्वो । दिसिमाणसइब्भंसो अवयासो पावपसरस्स ॥ ९२४६ ।। एयमइयारपंचगमभिवज्जंतो समज्जए पुन्नं ।। सव्वेसि पि हु सत्ताण देइ अभयप्पयाणं च ॥ ९२४७ ॥ कहियं दिसिपरिमाणं तुह राय ! इमं गुणव्वयं पढमं । उवभोगपरीभोगाभिहमिहि बीयमक्खेमो ॥ ९२४८ ॥ कुसुमाहारविलेवणतंबोलप्पमुहविविहभेएण । सह भोज्जेणं भन्नइ उवभोगो वत्थुजाएण ॥ ९२४९ ॥ जो उवओगं गच्छइ पुणो पुणो मुणह परिभोगं । सो सयण--जाण-मंदिरवत्थाहरणं गणाईओ || ९२५० ॥ एयव्वयं तु दुविहं भोयणओ कम्मओ य होइ जहा । सयलाइयारसुद्धं तह आयन्नसु कहिज्जतं ॥ ९२५१ ॥ भोयणओ उस्सग्गेण ताव सुस्सावएण भोत्तव्वो || ९२५२ ॥ फासुयआहारो तदभावे अप्फासुयमचित्तं ॥ ९२५३ ॥ तं पि हु अपावमाणो भुंजइ असणाइयं सचित्तं पि ॥ नवरं भोयणओ चयइ सावओ एय वत्थूणि ॥ ९२५४ ॥
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