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________________ ७१८ खेत्ताणं वत्थूण य गहियाभिग्गहपमाणइक्कमणं । तो नियडखेत्त - घरजोयणेण सड्ढेहिं कायव्वं ॥ ९२२८ ॥ नियमावहिकालं जानंतस्स सुसावएण दायव्वं । अहियहिरन्नसुवन्नयपमुहं अंगीकयवएण ।। ९२२९ ॥ नियमं ते गिन्हस्सं धणधन्नाई निजंपिउं गिहिणा । मोत्तव्वाइं न बंधेय कयाहिनाणेण परगेहो ॥ ९२३० || ता नियपरिग्गहे कुणसु दासवसहाइवयसमत्तीए । गिहिस्सं ति न कारवइ दुपय- चउपय- अइक्कमणं ।। ९२३१ ॥ अन्नस्स न दायव्वं गिण्हेयव्वं मए वयं ते ते । कुवियं ति न भावेणं कायव्वं वयअइक्कमणं ॥ ९२३२ ॥ एए पंच अइयारा एयव्वयपालणुज्जमपरेहिं । सम्मं वियाणियव्वा नाऊण परिच्चएयव्वा ।। ९२३३ || नो होइ वाउलत्तं उप्पज्जइ न बहुपावपब्भारो । संजायइ संतोसो नराण इच्छानिरोहेण ॥ ९२३४ ॥ एवं पंचाणुव्वयमूलगुणग्गहणजायसुहभावो । गिण्हइ सिक्खावयं सत्तगं गिही उत्तरगुणत्थी ॥ ९२३५ ॥ सिरिअणंतजिणचरियं पंचममणुव्वयमिणं भणियं इन्हि गुणव्वए तुज्झ । कहिमो तेसिं पढमं दिसिव्वयं सुणसु इक्कमणो ॥ ९२३६ ॥ उड्ढाहो तिरियदिसासु गमणपरिमाणकरणभेएहिं । तिविहं दिसिव्वयमिणं जह होइ तहा निसामेसु ॥ ९२३७ ॥ परचक्कभया अह कोऊआइणा सेलमारुहंतेण । सद्देणुड्ढदिसाए जोयणसंखा विहेयव्वा ॥ ९२३८ ॥ न विवरसरिकूवाइप्पवेससंखाइरित्तगमणाई । कायव्वाइं अहोदिसिगुणवयड्ढेण सड्ढेण ॥ ९२३९ || पुव्वाइदिसासु कयं गमणे जं जोयणाण परिमाणं । तमइक्कमइ न सड्ढो तिरियदिसि गुणव्वएक्करई ।। ९२४० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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