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________________ धम्मदेसणा ७१७ तह जं कणयाईयं घडियं तं भन्नए हिरन्नं ति । आईसद्देण पुणो कंचणरुप्पाइं घिप्पंति ॥ ९२१५ ॥ तेसिं संखा कज्जा सुणसु धणं संपयं कहिज्जंतं । गणिमं धरिमं मेयं पारिच्छिज्जं ति चउभेयं ॥ ९२१६ ॥ गणणा पुव्वं कीरंति कस्स कय-विक्कया तयं गणिमं । जाउफलपूयप्फलहरडइनालियरफलपमुहं ॥ ९२१७ ॥ तुलिएण ववहरिज्जइ तज्जुतुलाईहिं जेण तं धरिमं । मंजिट्ठा गुलकप्पास-खंडघणसारघुसिणाई ॥ ९२१८ ॥ जं सेइयाइएहिं माणेहिं मविज्जए तयं मेयं । जीरय-अजमय-घय-तेल्ल-राइया-मेत्थियाईयं ॥ ९२१९ ॥ तं चिय पारिच्छिज्जं परिक्खिउं घिप्पए जमच्छीहिं । मणि-हीरय-पट्टउलअवडवुयकंबलयवत्थाई ॥ ९२२० ॥ एयं चउहा वि धणं भणियं इण्हि तु आइसद्दाओ । चउवीस भेयभिन्नं भन्नइ धनं जमुत्तं च ॥ ९२२१ ॥ धन्नाइं चउवीसं जव-गोहुम-सालिवीहि-सट्ठीया । कोद्दव-अणुया-कंगू-रालग-तिल-मुग्ग-मासा य ॥ ९२२२ ॥ अयसिहरमिच्छतिउडगनिप्फावसिलंदरायमासा य । इक्खू-मसूर-तुयरी-कुलत्थ तह धन्नयकलायं ॥ ९२२३ ॥ कायव्वं परिमाणं इमाण दुपयम्मि पुरिसहंसाई । गो-महिसि-हयाई वि आइसघाउ परिमियं कज्जं ॥ ९२२४ ॥ पित्तल-तंबय-कंसय-सुवन्न-अयदारु-मट्टिया जणिए । कुवियम्मि विय विहेयं परिमाणं मोक्खकंखीहिं ॥ ९२२५ ॥ खेत्ताईण अइक्कमरूवा पल्लाधिपंच अइयारा । संजोयणं पयाणं च बंधणं कारणं भावो ॥ ९२२६ ॥ सामन्नेणं कहिया एए तुह राय ! बोहणत्थं जे । ताणिक्केक्कं कहिमो जाणेउं तो परिवइज्जा ॥ ९२२७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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