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सिरिअणंतजिणचरियं पत्तो तप्पासे कंठकंडए मूलिउं पलोएउं । चिंतइ किमिमा कंठम्मि मूलियाए य हरिणीए ॥ ९४४ ॥ बद्धंति तिरिच्छाणं कंठे किंकिणियघरघराईणि । ता कंडयमुच्छोडिय मूलियमेयं निरक्खेमि ॥ ९४५ ॥ तो तहविहिए कुमरेण हरिणिया सा ठिया तरुणरमणी । घणसिहिणी ससिवयणी गयगमणी सरलचलनयणी ॥ ९४६ ॥ तं दटुं संजाओ कुमारचित्तम्मि विम्हओ दूरं । तो सो चिंतइ रन्ने विहीसिया का वि किं एसा ? || ९४७ ॥ इय चिंतंतं कुमरं सकायरच्छं पलोयमाणा सा । सेयपुलयप्पकंपेहिं पारवस्सं समणुहवइ ॥ ९४८ ॥ परिपेच्छितं तं साहिलासमेवं विभावए कुमरो । न विनीसिया धुवमिमा जमिमाए साणुराइत्तं ॥ ९४९ ॥ मा विहिविलासवसओ जायं कमलावलीए तिरियत्तं । ता पुच्छामि इमं चिय इय चिंतिय भणइ तं कुमरो ॥ ९५० ॥ सुयणु ! बहुरूविणी तं जं हरिणी माणुसत्तमाक्त्ता । अहवा इत्थीचरियं अगोयरं अमरगुरुणो वि ॥ ९५१ ॥ ता जइ मह साहंती न सम्मिज्जसि तह समा वि कहणिज्जं । ता कहसु हरिणनयणे ! निययहरिणत्तवुत्तंतं ॥ ९५२ ॥ तं सोउं तीउत्तं जइ तुज्झ वि पुरिसरयण ! न कहिस्सं । को नाम कहणजोग्गो ता होही भुवणगब्भे वि ॥ ९५३ ॥ हुंती हं कमलपुरे नरिंदसिरिकमलकेसरस्स सुया । कमलावलिनामा सह सहीहिं भवणग्गमारूढा ॥ ९५४ ॥ कीए वि नहनिवडणपुच्छियाए कयचेयणाए रमणीए । सिसिरकिरियाहि नियकहकहणच्छलओ रहे हरिया ॥ ९५५ ॥ आणेऊणं मुक्का य एत्थ तो सा ठिओ नरो तरुणो । रइयकरकमलकोसं पयंपिया तेण महमेवं ॥ ९५६ ॥
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