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________________ ७५ गिहिधम्मे चंदसेणकहा जा मज्झ कए वरिया सा भज्जा चेव मे न संदेहो । किं नाम नावरद्धं ता केणइ [नरो] हरंतेण ॥ ९३१ ॥ जीवंता वि मया ते जाण पिया हरिय निज्जइ परेहिं । नूणं नराहमाणं ताण स जणणी मया सेया ॥ ९३२ ॥ इय चिंतिय कुमरेणं तंबोलरसेण भुज्जखंडम्मि । नियगमणसूयगाओ गाहाओ दोन्नि लिहियाओ ॥ ९३३ ॥ तत्तो निसीहसमए सुन्ने दठूण सव्वपाहरिए । रइऊण वंठवेसं धणुभत्थयछुरियअसिकलिओ ॥ ९३४ ॥ नीहरिओ पाहरिए वंचंतो तह भमंतभामरिए । ठाणे ठाणे ठाणंतरिए वि हु दूरमुब्भंतो ॥ ९३५ ॥ कडयवहिमहियलम्मि पत्तो निस्संककयपयक्खेवो । गुरुतरजवेण जंतो पत्तो एगं महारन्नं ॥ ९३६ ॥ साल-प्पियाल-हिंताल-ताल-सरलाइदुमसमूहसियं । हरि-सरह-वराह-करेणु-विरुय-रूरू-रोज्झभयजणयं ॥ ९३७ ॥ गुरुभीमनउलकलियं विलसिरसहदेवसउणिसंजुत्तं । अज्जुणसोहंजणसंकुलं च जं पंडुगेहं व ॥ ९३८ ॥ तम्मि भमंतो बहलदुमगुम्मन्मंतरे नियइ कुमरो । अइसरलतरलधवलच्छिपेच्छणारईयकमलवणं ॥ ९३९ ॥ एसं उव्विग्गमणं हरणिघोरंसुदंतुरियनयणिं । कंठपरिट्ठियसुसिलिट्ठकंडयं पंडुरसरीरं ॥ ९४० ॥ तं पेच्छिऊण उच्छलियकोउगो चिंतए निवंगरुहो । रन्नमईए कंठम्मि कंडयं जं तमच्छरियं ॥ ९४१ ॥ अहवा कस्सइ पारद्धियस्स भुल्ला वराईया एसा । जमह नासइ न य मानज्जइ अंसूहिं उव्विग्गा ॥ ९४२ ॥ अवियण्डं च पलोयइ उग्गीवा मज्झ समुहमविरामं । ता जामि समासन्ने इमाए इय चिंतिउं कुमरो ॥ ९४३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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