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सिरिअणंतजिणचरियं तो ते विम्हियहियया, घित्तुं दव्वं नियं नियं बिंति । अच्छरियं अच्छरियं, नियह अहो एय नरमणिणो ॥ ५४३५ ॥ कयरयनिक्खेवेण वि इमेण परिकीलिय व्व निक्कंपा । चोरा कया अचिंतं जं मणिमंतो सहिप्फुरियं ॥ ५४३६ ॥ चोराणमाउहाणि वि गहियाई बंधिऊण ते नीया । निरुवद्दवम्मि ठाणे, मुक्काओ कीलिउं तेण ॥ ५४३७ ॥ सम्माणिऊण सत्थाहिवेण भणियं वसंतदेव ! तए । पाणेहिं समं सत्थियजणस्स वित्तं विइन्नं ति ॥ ५४३८ ॥ तेणुत्तं सत्थाहिव ! सव्वमिमं तुम्ह पुन्नविप्फुरियं । हुंति य लाहालाहा पाणीणं पुन्नपावेहिं ॥ ५४३९ ॥ वच्चइ वसंतदेवो समग्गसत्थेण गोरविज्जतो । पत्तो य सत्थवाहो कमेण सोहग्गपुरनयरे ॥ ५४४० ॥ जं कय नायवियारं कइकुलकलियं विचित्तिया वासं । चारुमहीहरदुग्गं, विरायए रन्नमज्झं व ॥ ५४४१ ॥ जं परिपालइ राया रायामलजोन्हसन्निहजसोहो । . सोहग्गसुंदरो उभयहा वि गुरु नायविक्खाओ ॥ ५४४२ ॥ गुरुगुडरपडमंडवचउखंडयपडकुडीसु सत्थवई । दाउं तत्थावासं, कयभोयणपमुहकरणिज्जो ॥ ५४४३ ॥ रायउवायंणकज्जे गहिऊणं चारुवत्थवित्थारं । पत्तो रायउलं सह, वसंतदेवेण सत्थवई ॥ ५४४४ ॥ पत्तो पडिहारमहिं, पेच्छइ पडिहारमइसयुव्विग्गं । पुच्छई य जमुवेयस्स कारणं कहह तं मज्झ ॥ ५४४५ ॥ तेणुत्तं अवियाणियसरूवरोएण पीडिओ राया । पज्जंतदसं पत्तो दुहेण से दुक्खिओ लोगे ॥ ५४४६ ॥ वेज्जेहिं विचिगिच्छाओ, कयाओ नाणाविहाओ सव्वेहिं । वाहाए मूलियाओ, बद्धाओ माणसणाहाओ ॥ ५४४७ ॥
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