SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ . सिरिअणंतजिणचरियं कणयकलसोहसोहाए, तीए मणितोरणाए भुवणपहू । आरूढो लीलाए, हरिसियहरिभुयलयालग्गो ॥ १९४५ ॥ उवविट्ठो मणिसीहासणम्मि, कयतिजयजणजयारावो । कओ लवणुत्तारणओ, पासट्ठियगोत्तवुड्ढाहिं ॥ १९४६ ॥ उवविट्ठो पयवीढे, उच्छंगियसामिसालकमकमलो । भूमीसअणंतबलो, भविस्सपियविरहउब्विग्गो ॥ १९४७ ॥ मुत्तावचूलकलियं, मणिमयकलसं पिसंडिदंडयरं । धरियं सियायवत्तं, अच्चुयइंदेण जयपहुणो ॥ १९४८ ॥ सोहम्मीसाणसुरेसरा पहुं वीययंति भत्तीए । चंदकरचारुचामरजुएण मणि-कणयदंडेण ॥ १९४९ ॥ माहिंदसुरिंदेणं धइआ अंसावलंबिया धरिया । करकलियकणयदंडो, सणंकुमारो ठिओ डंडी ॥ १९५० ॥ पहपयडणाइचाडूणि बिंति सिरिबंभलंतया हरिणो । तं हत्थसाडएहिं, वीयंति य सुक्कसहसारा ॥ १९५१ ॥ जाओ आणय-पाणय-कप्पदुग-सुरवई अलंबधरो । मणिदप्पणे गहेडं, ठिया पुरो तरणि-रयणियरा ॥ १९५२ ॥ भवणवइणो सुरिंदा, सव्वे वि हु अंगरक्खया जाया । करवाल-फलय-वावल्ल-भल्ल-सिल्लाइसत्थकरा ॥ १९५३ ॥ इय सव्वेहि वि इंदेहिं, सामिणो सेवगत्तमणुसरियं । अहव न किं किं कीरइ, भत्तिपरायत्तचित्तेहिं ॥ १९५४ ॥ तो ओखित्ता सिविया, पढमं मणुएहिं तयणु अमरेहिं । सिंगारियअंगेहिं, सहस्ससंखेहिं सहस त्ति ॥ १९५५ ॥ दुंदुहि-डुडुदुडि-डक्का-ढक्का-नीसाण-भूरिभेरीण । सद्देण. समग्गं पि हु पूरिज्जइ नह-महीविवरं ॥ १९५६ ॥ तो सह पहुणा वयगहणलालसा मउडबद्धरायाणो । सुयदिन्नपया सिबियाहिं, आगया सहस संखयरा ॥ १९५७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy