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सिरिअणंतजिणचरियं कणयकलसोहसोहाए, तीए मणितोरणाए भुवणपहू । आरूढो लीलाए, हरिसियहरिभुयलयालग्गो ॥ १९४५ ॥ उवविट्ठो मणिसीहासणम्मि, कयतिजयजणजयारावो । कओ लवणुत्तारणओ, पासट्ठियगोत्तवुड्ढाहिं ॥ १९४६ ॥ उवविट्ठो पयवीढे, उच्छंगियसामिसालकमकमलो । भूमीसअणंतबलो, भविस्सपियविरहउब्विग्गो ॥ १९४७ ॥ मुत्तावचूलकलियं, मणिमयकलसं पिसंडिदंडयरं । धरियं सियायवत्तं, अच्चुयइंदेण जयपहुणो ॥ १९४८ ॥ सोहम्मीसाणसुरेसरा पहुं वीययंति भत्तीए । चंदकरचारुचामरजुएण मणि-कणयदंडेण ॥ १९४९ ॥ माहिंदसुरिंदेणं धइआ अंसावलंबिया धरिया । करकलियकणयदंडो, सणंकुमारो ठिओ डंडी ॥ १९५० ॥ पहपयडणाइचाडूणि बिंति सिरिबंभलंतया हरिणो । तं हत्थसाडएहिं, वीयंति य सुक्कसहसारा ॥ १९५१ ॥ जाओ आणय-पाणय-कप्पदुग-सुरवई अलंबधरो । मणिदप्पणे गहेडं, ठिया पुरो तरणि-रयणियरा ॥ १९५२ ॥ भवणवइणो सुरिंदा, सव्वे वि हु अंगरक्खया जाया । करवाल-फलय-वावल्ल-भल्ल-सिल्लाइसत्थकरा ॥ १९५३ ॥ इय सव्वेहि वि इंदेहिं, सामिणो सेवगत्तमणुसरियं । अहव न किं किं कीरइ, भत्तिपरायत्तचित्तेहिं ॥ १९५४ ॥ तो ओखित्ता सिविया, पढमं मणुएहिं तयणु अमरेहिं । सिंगारियअंगेहिं, सहस्ससंखेहिं सहस त्ति ॥ १९५५ ॥ दुंदुहि-डुडुदुडि-डक्का-ढक्का-नीसाण-भूरिभेरीण । सद्देण. समग्गं पि हु पूरिज्जइ नह-महीविवरं ॥ १९५६ ॥ तो सह पहुणा वयगहणलालसा मउडबद्धरायाणो । सुयदिन्नपया सिबियाहिं, आगया सहस संखयरा ॥ १९५७ ॥
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