________________
१५५
अणंतजिणदिक्खावण्णणं अणुगम्मतो तेहिं, पूरंतो महियलं निवबलेहिं । हय-गय-रह-भडरूवेहिं तह नहं पि हु विमाणेहिं ॥ १९५८ ॥ रयणाभरणालंकियउ कड्ढिज्जंतहरि-करि-रहाण । अट्ठोत्तरस्सएणं, पत्तेयं अणुसरिज्जंतो ॥ १९५९ ॥ हट्टटालय-पासायसालसुरमंदिरग्गचडियाहिं ।। अच्चिज्जंतो कुलबालियाहिं कुसुमक्खए खिविउं ॥ १९६० ॥ काउमवयारणाई, नेत्ताइसुवत्थभूसणसएहि । रायगिहदुवारपत्तो, पणमिज्जंतो य पउरेहिं ॥ १९६१ ॥ इहलोगाओ सारं, परलोयं निच्छएण मन्नामो । परलोयत्थे कहमन्नहा, पहू चयइ रज्जसिरिं ॥ १९६२ ॥ जो गच्छंतो निदं, जद्दरतूलीसु सुहयफासासु । सो कठें लहिही निई, सक्करिले थंडिले सुत्तो ॥ १९६३ ॥ निद्धण्हमुहुररसरसवईए जो विहियभोयणो निच्चं । सो भिक्खाभमणपत्तविरसभत्तं कहं जिमिही ? ॥ १९६४ ॥ जो हत्थि-हय-सुहासण-रहाइजाणेहिं सव्वया जंतो । कह सो भमिही भिक्खं, रवितविय-पहेऽणुवाहणओ ॥ १९६५ ॥ मयणाहि-चंदणाईहिं जो सया कयविलेवणो हुँतो । कह वहिही सो गिम्हुम्हसेयजललग्गमलपंकं ॥ १९६६ ॥ धवलायवत्तच्छाया सुहमणुभूयं सया पहे जेण । आयावंतो सो गिम्हभवरविं कह निरिक्खेही ॥ १९६७ ॥ जो न मुणंतो सीयं, पासाया-वरयगब्भसेज्जठिओ । सो कहं सहिही सिसिरे, नइनियडो सजलकणवाए ॥ १९६८ ॥ जो पाउसम्मि नवहेमवायसंजायसुहरसुक्करिसो । कहं सहिही सो घम्मं, कयठिई गिरिगुहागन्भे ॥ १९६९ ॥ इय तिय-चउक्क-चच्चरठाणे, ठियजुवइजुवजणालावो । निसुणंतो पेच्छंतो, य हट्टसोहाओ विहियाओ ॥ १९७० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
Only
www.jainelibrary.org