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________________ २१२ सिरिअणंतजिणचरियं तेसिं समत्थि तणया, कणयाभा कणयकंदीली नाम । कामगिहं हंसगई कलाकलावप्पसत्तमई ॥ २६९३ ॥ उम्मीलियनवजोव्वणजुवजणमणवणचिइत्तमयणग्गी । अइवाहइ दिवसाई सलीलकीलारसपसत्ता ॥ २६९४ ॥ नववयवयंसियावग्गसंगया मणिसुहासणासीणा । आरामाइट्ठाणेसु, कोउए पेच्छिरी भमइ ॥ २६९५ ॥ सिंगारिणो जुवाणा, भमंति सेवयनरग्गतम्मग्गे । मयणपराहीणमणा अगणियमग्गस्समासययं ॥ २६९६ ॥ लीलुल्लासियभमुहं जं जं अवलोयए हरिणनयणं । अभिदंसियं व तं तं, मयणो सरगोयरे कुणइ ॥ २६९७ ॥ चिट्ठतिए चिट्ठति इंति इंतीए जंति जंतीए । अणुकूलंतिव्वतयं निरंतरं खयरतरुणनरा ॥ २६९८ ॥ केसि पि मणुम्माया जायए सा पुराणमईर व्व । तह अन्नेसिं अवहरइ चेयणं झत्ति मुच्छ व्व ॥ २६९९ ॥ अवराण मणोवित्तिं निन्नासइ गिम्हसमयनिंद व्व । उल्लासइ वेयल्लं काण विय कुजोगजुत्ति व्व ॥ २७०० ॥ एवंविहबहुभावे उब्भावइ इंदजालविज्जु व्व ।। सव्वुत्तमरूवअभग्गचंगसोहग्गसंगवसा || २७०१ ॥ कईया वि पलोएउं तं कन्नं चिंतए खयरराया । कस्सेसा दायव्वा कुमरस्स निवस्स वा कुमरी ॥ २७०२ ॥ जइ न पडिहाइ वरो मए विइन्नो इमाए सुगुणो वि । ता आभवं वराई विडंबिया भवइ निब्भंतं ॥ २७०३ ।। ता नायस्स निमित्तन्नुयाओ एयं वरस्स वियरेमि । इय चिंतिऊण पुच्छइ कन्नाए वरं निमित्तनुं ॥ २७०४ ॥ तो नाउं तेणुतं आणंदपुराहिवस्स देसु इमं । भूगोयरनरवइणो अह होइ इमा सुहट्ठाणं ॥ २७०५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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