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अइनिठुरगुरुनंगुलदंडिय तोडियं महीवडं । सगिरिवणं पिहु कंपावंतो गुरुघायभीयं व ॥ ६७७३ ॥ तुरयाणीय पुरट्ठिय कुमारतुरयाओ वामपासम्म । बद्धक्कमंतमिक्खिय सव्वे वि पलाईया तुरया || ६७७४ || कुमरंगरक्खया विहु रएण नट्ठा पुरो कयप्पाणा । विहुरे पत्ते पायं रक्खइ सव्वो वि अप्पाणं ॥ ६७७५ ॥ सह अंगलग्गवत्थाभरणेहिं जेहिं मंडला भुत्ता । चइय पहुं ते वि गया का वत्ता तुच्छवित्तीए ? || ६७७६ ॥ वट्टेति सहायत्ते सुत्थावत्थाए सयणपरिवारा । विसमदसावडियाणं वियरइ संभीसमवि विरलो ।। ६७७७ ॥ जं तस्स गुरुरएणं कुमरपहं न परिहरइ सीहो । अणुरत्तसेवओ इव तुरियतरं कयपयक्खेवो ॥ ६७७८ ॥ अंगीकयसुविवेया धम्मियपुरिस व्व कुमरहय - हरिणो । मग्गं अपरिहरंता संपत्ता दूरदेसम्मि ॥ ६७७९ ॥ संतम्मि ममालोए सीहो न वि मं विही कुमरमज्झं । तो जामि अत्थमिय चिंतिउं व अत्थंगओ सूरो ॥ ६७८० ॥ निवसुयपहमसुयं तं सीहं पसरंतथूलभरतारा ।
खलिउमसत्ता रत्ता रोसेण व अवगया संझा ।। ६७८१ ॥ वित्थारेमि तममहं कुमरं न निरिक्खए जहा सीहो । इय भाविउं च भुवणे वियंभियं झत्ति रयणीए ॥ ६७८२ ॥ तमभरविरोहियम्मिं कुमरहरी निन्नउन्नयम्मि पहे । मा पडउत्ति पहं से दंसिउमिव उग्गओ चंदो ॥ ६७८३ ॥ उग्गच्छंतकलावइकिरणा पसरंति तमधरे गयणे । जओ णाए जन्हवीए पविसंति सेय- पवह व्व ॥ ६७८४ ॥ पोढत्तपत्तससहरजोण्हाभरपयडिएऽडई मग्गे ।
तह चेव दो वि हरिणा मण - नयणगईए गच्छंति ॥ ६७८५ ॥
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सिरिअणंतजिणचरियं
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