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रयणसुंदरकहा मह नामहरो एसो त्ति पसरिया सरिसमच्छरेणेव । हेलापहउ हरिणा कुमरहरीकरचवेडाए ॥ ६७८६ ॥ खरनहरकरचवेडा पडंततुरयाओ उत्तरिय सहसा । कुमरो कयकरणो उभयहा वि वडविडविमारूढो ॥ ६७८७ ॥ मयतुरयमंसरुहिरासायणपाणेहिं तडछुहतन्हो । । तरुणो तस्सेव तले सुत्तो सोक्खेण सो सीहो ॥ ६७८८ ॥ वडसाहाए निसन्नो रायंगरुहो वि चिंतिउं लग्गो । अहह , महबालिसत्तं अपरिक्खयकारियत्तं च ॥ ६७८९ ॥ अहह अहो तरुणत्तणविमूढया ! अहह निव्विवेयत्तं ! । सच्छंदचारियाहह ! इंदियवसगत्तणं अहह ! ॥ ६७९० ॥ जमहं अणप्पवसओ होउं पडिओ महाअणत्थम्मि । एयम्मि सुयणसंतावकारए पिसुणहासकरो ॥ ६७९१ ॥ सुररायरिद्धिवित्थरविडंबगाडंबराप्पहाणाए । चुक्को हं नियदुव्विलसिएण पउरायलच्छीए ॥ ६७९२ ॥ कत्थाहं छत्तद्धयसिक्किरिसयचारुचक्ककयवेढो । कत्थेगागी जूहब्भट्ठो चिट्ठामि हरिणो व्व ॥ ६७९३ ॥ मंडलिया सामंता सेणावइणो अमच्च-मित्ता य । किच्छेण पाणधरणपहुणो होहि त्ति मह विरहे ॥ ६७९४ ॥ विप्फुरियकिरणमणिभूसणाई वरवत्थ-कोसकोट्ठारा । मह संजाया सिविणयरज्जालंकारकरणिधरा || ६७९५ ॥ नवनेहनिब्भरब्भूयविरहवेयालवियलया कलिया । मरिही धुवं रायपियापायोगेण केणावि ॥ ६७९६ ॥ जइ कह वि हु मह विरहे मरिही अच्चन्नियं पिययमाए सो । ता तस्स वीरमवभासभूसिओ अहमवि मरिस्सं ॥ ६७९७ ॥ जं जीवियाओ मरणं विरहीण वरं न जीवियं नृणं । दुहदाइ जमाजपि वल्लहं अद्धसल्लं व ॥ ६७९८ ॥
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