SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 556
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२७ रयणसुंदरकहा कत्थइ पेच्छइ मउमियकुसुमेहिं निबद्धपाणिकोसंबं । भमरारवेहिं भूरि थुईउ भणिरिंबकेरविणिं ॥ ६७६० ।। अवरत्थ नियइ डिंडीर-पिंडसेणीओ जलतरंगेहिं । अंदोलिज्जंतीओ सद्धिं कलहंसमालाहिं ॥ ६७६१ ॥ अवरत्थ जलगयुमुक्कफारफुक्कारपडिरजलपवहं । विजयद्धयवडउन्भियमवरगइंदाणमिक्खेई ॥ ६७६२ ॥ चलिरकलहंसतरलियकमलुड्डियभमिरभमरमंडलयं । नवमेहडंबरछत्तम्मि पाउससिरीए पलोएइ ॥ ६७६३ ॥ दक्खामंडवनवकयलिसंडअंबयवणेसु भमिऊण । अवयरिओ कुमरो जायकोउओ कमलसरसलिले ॥ ६७६४ ॥ समवयवयस्स लीलावईहिं सह सलिलकेलिमणुहविउं । कयपंकयावयंसो उत्तरियसराओ तीरम्मि || ६७६५ ॥ मुत्तुं जलाविलाई परिहइ वत्थाई सो विसिट्ठाई । जडजुत्ताण गुणीण वि जुत्तो च्चिय अहव परिहारो ॥ ६७६६ ॥ तो तम्मि तुरंगम्मि चडिउं अडई निरिक्खिउं लग्गो । अवरावररमणीयदुमप्पएसे पलोयंतो ॥ ६७६७ ॥ पत्तो दूरतरम्मि तुरियतुरंगेहिं अणुसरिज्जंतो । कोऊहलउक्कलिया कलिओ नवलइनिसिद्धो वि ॥ ६७६८ ॥ एत्थंतरम्मि अइबहलपत्तलद्दुमसमूहमज्झाओ । हयखुरपुडदडवडरवपडिबुद्धो उठ्ठिओ सीहो ॥ ६७६९ ॥ गुंजापुंजारुणनयणकिरणजालेण पाटलं गयणं । कुव्वंतो परिपसरिय अरुणारुणकिरणकलियं व ॥ ६७७० ॥ थोरयरघुरुहुरारावपडिसद्दियसेलकंदलसरेहिं । उप्पायंतो गुंजतो सीहसंघायसंकं व ॥ ६७७१ ॥ परिविहुयकेसरसडाकडारपहपसरपूरियदियंतो । देहे अमायंतमहाकोवो अनलजालजडिलो व ॥ ६७७२ ॥ | ६७६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy